Book Title: Manishiyo Ki Drushti Me Dr Bharilla
Author(s): Ravsaheb Balasaheb Nardekar
Publisher: P T S Prakashan Samstha

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Page 28
________________ 26 मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल नहीं आते। डॉ. भारिल्लजी ऐसे ही विशिष्ट व्यक्ति हैं, जो सिर्फ अपने मिशन में व्यस्त हैं और यश उनके पीछे भागता है। ऐसे महामनीषी, बेजोड़, व्यक्तित्व के धनी को मेरे अनेक-अनेक प्रणाम। - डॉ. राजीव प्रचण्डिया, अलीगढ़ निष्णात विद्यागुरु इस कार्य की लक्ष्य पूर्ति हेतु मुझे तलब लगी एक ऐसे योग्य निष्णात विद्यागुरु की, जो इस संकल्पित अनुष्ठान को अपनी समग्र प्रतिभा के साथ परिपूर्ण कर सके। ऐसी प्रतिभा की खोज हेतु अन्ततः मैं निकल पड़ा देशव्यापी यात्रा पर और मुझे एकदा अन्धेरी कालगुहा के छोर पर दिखाई पड़ी एक उजड़ी-सी रजत-रेखा। मैंने सन् 1980 में पहली बार डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल के बारे में सुना, फिर उन्हें देखा और उनसे मिला। अगले दो सालों तक मैंने उनके प्रवचन व व्याख्यान सुने । बहुत नजदीक से उन्हें समझने व उनका आकलन करने का सुयोग पाया। सन् 1982 में, मैंने डॉ. भारिल्ल के सम्मुख, जैन अध्यात्म स्टडी सर्किल फैडरेशन' संगठन की संस्थापन की योजना प्रस्तुत की। ___ उन्होंने वादा किया अपने बेझिझक सहयोग का, आत्मस्फूर्त निरन्तरता की आश्वस्ति का और अपने क्रियाशील योगदान का। उस वक्त यही वह शख्स था, जिसने इस संगठन की परिकल्पना पर दूरगामी दृष्टि दौड़ाई और भविष्य का कथन किया कि यह संगठन जैनदर्शन की आधारभूत संकल्पना को साकार करेगा, न केवल मुम्बई के दायरे में; बल्कि देश-विदेश के फलक पर । ___ डॉ. भारिल्ल, प्रदीप्तिमान व्यक्तित्व और गत्यात्मक चरित्रवत्ता से सम्पन्न, आज समूचे समुदाय के नेतृत्वकर्ता हैं। आप हैं एक आदर्श विद्यागुरु। - दिनेशभाई मोदी, मुम्बई

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