Book Title: Manishiyo Ki Drushti Me Dr Bharilla
Author(s): Ravsaheb Balasaheb Nardekar
Publisher: P T S Prakashan Samstha

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Page 34
________________ 32 मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल श्री टोडरमल जैन मुक्त विद्यापीठ की परिकल्पना भी आपकी देन है। इस विद्यापीठ के माध्यम से संस्कृत आदि की अनिवार्यता के बिना किसी भी जाति, उम्र, वर्ग के लिए जैन तत्त्व विद्या के प्रचार-प्रसार हेतु कटिबद्ध हैं। __ जैन समाज के अनेक परिवार आजीविका के उद्देश्य से विदेशों में जाकर बस गए हैं। इन परिवारों में धार्मिक संस्कार बने रहें तथा भावी पीढ़ी जैनधर्म के मर्म को समझ सके; इस हेतु सन् 1984 से लगातार डॉ. भारिल्ल प्रतिवर्ष नार्थ अमेरिका, कनाड़ा, इंगलैण्ड, बेल्जियम, स्विटजरलैण्ड, जर्मन, जापान, हांगकांग, केनिया, सिंगापुर, मलेशिया, दुबई, शरजाह, अबुधाबी आदि 15 देशों में जाकर गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की अध्यात्म परम्परा को सुदृढ़ करने में संलग्न हैं। अब तक 35 यात्राओं के माध्यम से आपने तत्त्वप्रचार-प्रसार की दिशा में मिसाल कायम की हैं। डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल के व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर विश्वविद्यालय स्तर पर महनीय कार्य हुआ है। तत्त्ववेत्ता डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल अभिनन्दन ग्रंथ का प्रकाशन जैन समाज के इतिहास में अद्वितीय है। 708 पृष्ठों का यह विशाल ग्रन्थ 12 खण्डों में विभक्त हैं। इसमें 357 लेख समाविष्ट हैं। राष्ट्र संत सिद्धान्त चक्रवर्ती पू. आचार्य श्री विद्यानन्दजी मुनिराज के पावन सान्निध्य में विमोचित यह ग्रन्थ जन-जन को रोमांचित किये हुये हैं। ___ डॉ. महावीर प्रसाद टोकर द्वारा मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय से पीएचडी के लिए मान्य शोध ग्रन्थ 'डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल : व्यक्तित्व और कृतित्व' 7 अध्यायों में विभक्त है। इस 440 पृष्ठों के ग्रन्थ का प्रकाशन 11 मई 2005 को किया गया था। इसी प्रकार श्रीमती सीमा जैन ने सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर से 'डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल के साहित्य का समालोचनात्मक अनुशीलन' विषय पर स्वीकृति प्राप्त कर ली है तथा डॉ. मंजू चतुर्वेदी के निर्देशन में शोधरत हैं।

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