Book Title: Malva me Jain Dharm Aetihasik Vikas
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf

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Page 14
________________ मालवा में जैनधर्म: ऐतिहासिक विकास २५३ सदियों के बने हुए देवालयों तथा अन्य इमारतों की सामग्री का रूपान्तरित करके यावनी तक्षणकला की तर्ज की मौजूदा आलीशान इमारतें मुसलमानी समय में निर्माण हुईं जिससे हिन्दू राजत्वकाल की एक भी इमारत जमीन के ऊपर अभग्न न रही। मुस्लिमकालीन मालवा में जैनधर्म:- राजपूत काल में जैनधर्म मालवा में अपनी उन्नति के शिखर पर था । राजपूतों के पतन के पश्चात् मालवा मुस्लिम शासकों के अधिकार में आ गया। इस काल में न केवल जैनधर्म अपितु अन्य धर्मों को भी हानि उठानी पड़ी फिर भी जहाँ अनेक मन्दिर और मूर्तियाँ ध्वस्त हुईं वहीं दूसरी ओर इनका निर्माण भी हुआ लेकिन कम संख्या में। जैन मन्दिरों को मस्जिदों के रूप में भी परिवर्तित किया गया। जिसके उदाहरण उज्जैन के बिलोटीपुरा स्थित बिना नींव की मस्जिद एवं आगर की होशंगशाही मस्जिद है । उज्जैन के जैन मन्दिर का परिवर्तन दिलावर खाँ गोरी ने किया था तथा आगर का उसके पुत्र होशंग गौरी ने । यद्यपि इस युग में मन्दिरों के ध्वंस की जानकारी मिलती है किन्तु इस युग में ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं कि अनेक जैनमतावलम्बी मांडव के सुलतान के यहाँ उच्च पदों पर कार्यरत थे तथा अनेक जैन मतावलम्बियों ने साहित्य को अमूल्य देन दी है । ऐसे ही अधिकारियों, विद्वानों, मुनियों का और उनके द्वारा रचित साहित्य का विवरण इस प्रकार दिया जा सकता है: १- तारण स्वामी - ये तारणपंथ के प्रवर्तक आचार्य थे। इनका जन्म पुहुपावती नगरी में सन् १४४८ में हुआ था । पिता का नाम गढ़ा साव था। वे दिल्ली के बादशाह बहलोल लोदी के दरबार में किसी पद पर कार्य कर रहे थे । आपकी शिक्षा श्री श्रुतसागर मुनि के पास हुई । आपने कुल १४ ग्रन्थों की रचना की जो इस प्रकार हैं: - ( १ ) श्रावकाचार (२) माला जी (३) पंडित पूजा (४) कलम बत्तीसी (५) न्यायसमुच्चयसार (६) उपदेश शुद्धसार ( ७ ) त्रिभंगीसार (८) चौबीस ठाना (६) ममलपाहु (१०) सुन्नस्वभाव ( ११ ) सिद्ध स्वभाव ( १२ ) रवात का विशेष (१३) छद्मस्थ वाणी और (१४) नाममाला । २ - मंत्री मंडन-मंडन दिलावर खाँ गोरी के पुत्र अमलखान या होशंग गोरी का प्रधानमंत्री था । होशंग गोरी ने ई० सन १४०५ से १४३२ तक मालवा पर स्वतंत्र शासक के रूप में शासन किया । मंडन प्रधानमंत्री तो था ही किन्तु इसके अतिरिक्त वह एक उद्भट विद्वान भी था । श्री मोहनलाल दुलीचन्द देसाई ने कवि महेश्वर के 'काव्य मनोहर' नामक ग्रन्थ के आधार पर मंडन के विषय में लिखा है कि व्याकरण में जाग्रत, नाटक एवं अलंकार १ विक्रम स्मृति ग्रन्थ, पृष्ठ ५६८-६६ २ संस्कृति केन्द्र उज्जयिनी ३ आगर का इतिहास, पृष्ठ ८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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