Book Title: Malva me Jain Dharm Aetihasik Vikas
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf

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Page 17
________________ २५६ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ (२) श्रृंगार मंडन-यह शृंगार रस का ग्रन्थ है, इसमें १०८ श्लोक हैं। (३) सारस्वत मंडन-यह सारस्वत व्याकरण पर लिखा गया ग्रन्थ है। इसमें ३५०० श्लोक हैं। (४) कादम्बरी मंडन-यह कादम्बरी का संक्षिप्तिकरण है, जो सुलतान को सुनाया गया था। इस ग्रंथ की रचना सं० १५०४ में हुई थी। (५) चम्पू मंडन-यह ग्रन्थ पांडव और द्रौपदी के कथानक पर आधारित जैन संस्करण है । रचना तिथि सं० १५०४ है । (६) चन्द्रविजय प्रबन्ध-ग्रंथ की रचना तिथि सं० १५०४ है। इसमें चन्द्रमा की कलाएँ, सूर्य के साथ युद्ध और चन्द्रमा की विजय का वर्णन है। (७) अलंकार मंडन-यह साहित्य शास्त्र का पांच परिच्छेद में लिखित ग्रन्थ है। काव्य के लक्षण, भेद और रीति, काव्य के दोष और गुण, रस और अलंकार आदि का इसमें वर्णन है । इसकी भी रचना तिथि सं० १५०४ है। (८) उपसर्ग मंडन-यह व्याकरण रचना पर लिखित ग्रंथ है। (e) संगीत मंडन-यह संगीत से सम्बन्धित ग्रन्थ है। (१०) कविकल्पद्र मस्कंध-इस ग्रन्थ का उल्लेख मंडन के नाम से लिखे ग्रन्थ के रूप में पाया जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि मंडन न केवल एक प्रधानमंत्री था वरन् वह चहुँमुखी प्रतिभा का धनी भी था। मंडन पर स्वतंत्र रूप से शोध कर इस प्रतिभाशाली विद्वान मंत्री के साहित्य को प्रकाश में लाने की आवश्यकता है। ३-धनदराज-यह मंडन का चचेरा भाई था। इसने शतकत्रय (नीति, शृगार और वैराग्य) की रचना की। नीतिशतक की प्रशस्ति से विदित होता है कि ये ग्रन्थ उसने मंडपदुर्ग में सं० १४९० में लिखे । ४-भट्टारक श्रुतकीति-ये नन्दी संघ और सरस्वती गच्छ के विद्वान थे। त्रिभुवनकीर्ति के शिष्य थे। अपभ्रंश भाषा के विद्वान थे। आपकी उपलब्ध सभी रचनायें अपभ्रंश भाषा के पद्धड़िया छन्द में रची गई हैं। आपकी चार रचनाएं उपलब्ध हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है (१) हरिवंशपुराण-जेरहट नगर के नेमिनाथ चैत्यालय में वि० सं० १५५२ माघ कृष्णा पंचमी सोमवार के दिन हस्त नक्षत्र के समय पूर्ण किया । (२) धर्मपरीक्षा-इस ग्रन्थ को भी वि० सं० १५५२ में बनाया क्योंकि इसके रचे जाने का उल्लेख आपने दूसरे ग्रन्थ परमेष्ठिप्रकाशसार में किया है। (३) परमेष्ठिप्रकाशसार-इसकी रचना वि० सं० १५५३ की श्रावण गुरु पंचमी के दिन मांडव के दुर्ग और जेरहट नगर के नेमिश्वर जिनालय में हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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