Book Title: Malva me Jain Dharm Aetihasik Vikas
Author(s): Tejsinh Gaud
Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf

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Page 16
________________ मालवा में जैनधर्म : ऐतिहासिक विकास २५५ (६) बाहड़ के पुत्र मंडन ने “सारस्वत मंडन" और "काव्यमंडन" की रचना की। (श्लोक क्र० १०७) (७) मंडन ने इस शृगार विषयक शतश्लोकी ग्रन्थ की रचना की। (श्लोक क्र० १०८) (८) शृंगार मंडन की पांडुलिपि सं० १५०४ (ई० सन् १४४८) के कार्तिक माह में काव्य मंडन की प्रतिलिपि, जो कि भाद्रपद में की गई थी, के बाद की गई है। (९) काव्य मंडन और सारस्वत मंडन की रचना शृगार मंडन के पूर्व की गई। सारस्वत मंडन-इस ग्रन्थ में मंडन के वंश, गच्छ तथा पिता के नाम के अतिरिक्त और भी जानकारी मिलती है (१) मंडन जैन था। उसका सम्बन्ध सोनगिर खरतर गच्छ से था। वह संघपति भी था। उसको सर्वविद्याविशारद कहा गया है--जो कि उसके ग्रन्थ काव्य मंडन, शृगार मंडन, सारस्वत मंडन और संगीत मंडन से प्रमाणित होता है । (२) वह मांडू के शासक आलम या अल्म का प्रधानमंत्री था। सारस्वत मंडन में निश्चित रूप से कहा गया है कि वह आलमसाहि का महाप्रधान था। यह विवरण प्रदर्शित करता है कि जब सारस्वत मंडन की रचना की गई तब वह मालवा के आलमसाहि का प्रधानमंत्री था। सम्भवतः इसी समय उसने काव्य मंडन की रचना की, क्योंकि शृगार मंडन में दोनों ग्रन्थों का संदर्भ है। (३) उसके पिता भी उसी की तरह संघेश्वर या संघपति थे। (४) मंडन के पिता का पद्म नामक भाई था। पद्म को भी अमात्य कहा गया है। डाक्टर गौडे ने आलमसाहि की पहिचान दिलावर खां के पुत्र होशंग गौरी से की है। काव्य मंडन ग्रंथ के आधार पर डाक्टर गौड़े मंडन के विषय में निम्नांकित जानकारी और देते हैं - (१) मंडन ने अपने ग्रंथ 'काव्य मंडन' के प्रथम सर्ग के प्रारम्भ में 'वीतराग परेश' और अन्त में 'जिनेन्द्र' का सन्दर्भ दिया है जिससे विदित होता है कि काव्य मंडन का लेखक जैन था। (२) मंडन 'महाजिन' का अनुयायी था। (३) जब मांडवगढ़ में आलमसाहि नामक राजा राज्य कर रहा था, उस समय 'काव्य मंडन' ग्रन्थ की रचना की गई। मंडन द्वारा रचित ग्रन्थों का विवरण इस प्रकार है(१) काव्य मंडन-इसमें पांडवों की कथा का वर्णन है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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