Book Title: Mahopadhyayaji ke Sahitya me Laukikatattva
Author(s): Manohar Sharma
Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf

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Page 5
________________ सुन्दर सेठ के यहां चलीं तो पुण्यसार भी उनके पीछे हो लिया। आगे सेठ ने अपनी सातों पुत्रियों का विवाह उसके साथ करके बड़ा सुख माना । । १०१ । विवाह के बाद पुण्यसार अपनी पत्नियों के साथ महल में गया परन्तु उसे चिन्ता थी कि कहीं वटवृक्ष उड़ कर वापिस न चला जावे। वह देह चिन्ता की निवृत्तिहेतु अपनी गुणसुन्दरी नामक पक्षी के साथ महल से नीचे आया और वहां एक दीवार पर इस प्रकार लिख दिया किहां गोपाचल किहां वलहि, किहां लम्बोदर देव । आव्यो बेटो विहि वसहि, गयो सत्तवि परणेवि ॥ गोपालपुरादागां, वल्लभ्यां नियतेर्वशात् । परिणीय वधू सप्त पुनस्तत्र गतोस्म्यहम् ॥ · इसके बाद पुण्यसार वहां से वटवृक्ष के कोटर में आ बैठा और वापिस अपने स्थान में आ गया । चुपचाप चल कर उस देवियों के साथ उड़कर अगले दिन पुरन्दर सेठ पुत्र की तलाश करता हुआ उसी बड़ के पास आ पहुँचा और पुत्र को वस्त्रालंकारों से सुसज्जित देख कर परम प्रसन्न हुआ। सेठ अपने बेटे को घर ले गया और उसके लाए हुए गहनों को बेच कर रानी का हार प्राप्त कर लिया गया। अब पुण्यसार ने जुए का व्यसन त्याग दिया और वह पिता के साथ अपनी दूकान पर काम करने लगा । Jain Education International इधर वल्लभी में जामाता के अचानक चले जाने के कारण सुन्दर सेठ के घर में बड़ी चिन्ता फैल गई और उसकी सातों पुत्रियाँ विरह में विलाप करने लगीं। गुणसुन्दरी ने पुण्यसार द्वारा दीवार पर लिखे हुए लेख को पढ़ कर अपने पति का पता लगाने का निश्चय किया। वह पुरुषवेश धारण करके गुणसुन्दर व्यापारी के रूप में गोपाचल आ पहुँची और वहाँ थोड़े ही समय में उसने अच्छी प्रसिद्धि प्राप्त कर ली । यहाँ गुणसुन्दर (युवक व्यापारी) पर रजवती की नजर पड़ी तो वह उसके रूप-सौन्दर्य पर मुग्ध हो गई और उसी के साथ विवाह करने का निश्चय किया। रलसार सेठ ने अपनी पुत्री के विवाह हेतु गुणसुन्दर को कहा परन्तु वह इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हुआ । फिर बहुत आग्रह किए जाने पर उसे रत्नवती का पाणिग्रहण करना ही पड़ा । गुणसुन्दरी ने ६ मास की अवधि में अपने पति का यह अवधि समाप्त पता लगा लेने का प्रण किया था। होने पर उसने गोपाचल में अग्निप्रवेश करने का निश्चय किया। राजा ने उसे रोका और पुण्यसार को उसे समझाने के लिए भेजा। इस समय वार्तालाप में सारा भेद प्रकट हो गया और गुणसुन्दर ने नारी वेश धारण कर लिया । सुन्दर सेठ की पुत्री का विवाह गुणसुन्दर के साथ हुआ था, जो स्वयं एक नारो था। अब उसके पति की समस्या सामने आई तो स्वभावतः ही पुण्यसार उसका पति माना गया। अंत में गुणसुन्दरी की ६ बहनों को भी वल्लभी से गोपाचल बुलवा लिया गया और पुण्य गर अपनी आठों पश्नियों के साथ आनंद से रहने लगा। 1 पुण्यसार विषयक उपर्युक्त कथा के प्रमुख प्रसंग इस प्रकार के हैं कि वे अन्य लोककथाओं में हुए कुछ बदले रूप में भी मिलते हैं । उनका सामान्य परिचय नीचे लिखे अनुसार हैं १ देवो अथवा देव की आराधना से संतानहीन व्यक्ति को पुत्र की प्राप्ति । २ युवक तथा युवती का पाठशाला में एक साथ पढ़ना और उनमें परस्पर प्रेम असा विवाद का पैदा होना । ३ सेठ-पुत्र का विशिष्ट कन्या से विवाह के लिए हठ करना और उसकी इच्छापूर्ति होना । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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