Book Title: Mahopadhyayaji ke Sahitya me Laukikatattva Author(s): Manohar Sharma Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf View full book textPage 4
________________ [ १०० ] से पालन किया गया । कथाओं का बालबोध हेतु प्रयोग हुआ है । इस प्रकार बालावबोध टोकाएं लोककथाओं के अध्ययन के लिए बड़ी उपयोगी हैं। जैन कवियों ने अपने कथा - काव्यों में भी प्रचुरता के साथ लोककथाओं का आधार ग्रहण किया है। इस प्रक्रिया ने एक नया ही वातावरण बना दिया है। वहां लोककथाओं को साधारण परिवर्तन के साथ धार्मिक परिवेश में प्रस्तुत किया गया है। पात्रों एवं स्थानों के नाम रख दिए गए हैं और उनके सुख-दुःख का कारण पूर्वजन्म के भले अथवा बुरे कर्मों को प्रगट किया गया है । जिस प्रकार बोद्ध कथा - साहित्य में लोककथाओं का धार्मिक दृष्टि से प्रयोग हुआ है, वैसा ही कुछ जैन साहित्य में । शैली भी हुआ है परन्तु दोनों जगह प्रयोग करने की की में कुछ मिग्नता अथवा अपनी विशेषता है। साथ ही ध्यान रखना चाहिये कि एक ही लोककथा को आधार मान कर अनेक जैन विद्वानों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की है, जो उन लोककथाओं की जनप्रियता तथा बोधपूर्णता की सूचक हैं | महाकवि समयसुन्दरजो ने भी अनेक कथा-काव्यों की रचना की है, जिनको परम्परा के अनुसार 'रास' 'चौपई' अथवा 'प्रबंध' नाम दिया गया है । यह विषय अति विस्तृत विवेचना की अपेक्षा रखता है परन्तु यहां स्थानाभाव के कारण उनकी केवल एक रचना पर ही कुछ चर्चा की जाती है । महाकवि प्रणीत श्री पुण्यतर चरित्र चोई' नामक कथाकाव्य प्रसिद्ध है, जो श्री भंवरलाल नाहटा द्वारा सम्पादित 'समयसुन्दर रास पंचक में प्रकाशित हो चुका है। इस काव्य की वस्तु संक्षिप्त रूप में इस प्रकार है पर्मात्मा पुन्दर सेठ के पुण्पधी नामक पवित्रता पत्नी थी, परन्तु उनके कोई पुत्र न था । अतः वे उदास रहते थे ! आखिर सेठ ने पुत्र हेतु कुलदेवी को आराधना की, जिसके वरदान से उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई । पुत्र का नाम पुण्यसार रखा गया और उसका बड़े हुलार Jain Education International जब पुण्यसार बड़ा हुआ तो उसको पढ़ने के लिए पाठशाला में भेजा गया । उसी पाठशाला में सेठ रत्नसार को पुत्र रत्नवती भी पड़ती थी। वह पुरुष निंदक थी। एक दिन इन दोनों में विवाद हो गया और ने पुण्यसार रत्नवती को पत्नी के रूप में प्राप्त करने का निश्चय प्रकट कर दिया । पुण्यसार ने घर आकर अन्न-पान छोड़ दिया और रत्नवती से विवाह करने का निश्चय सबको कह सुनाया। उसका पिता पुरन्दर सेठ नगर में बड़ी प्रतिष्ठा रखता था। वह रत्नसार के घर गया और अपने पुत्र के लिए उनकी पुत्री रत्नवती को मांग को परन्तु रत्नवती इस सम्बन्ध के लिए एकदम नट गई। फिर भी उसके पिता ने उसे अबोध समझ कर उसकी सगाई पुण्यसार के साथ कर दी । जब पुण्यसार कुछ और बड़ा हुआ तो वह जुआरियों की संगत में पड़ गया और एक दिन उसके पिता के यहां धरोहर रूप में पड़ा हुआ रानी का हार जुए में हार गया । फल यह हुआ कि पुण्यसार को अपना घर छोड़ना पड़ा और वह जंगल में जाकर एक बड़ के कोटर में रात बिताने के लिए बैठ गया । रात्रि के समय उस बड़ के पेड़ पर पुण्यसार ने दो देवियों को परस्पर में बातचीत करते हुए सुना । उनके वार्तालाप से प्रगट हुआ कि बल्लभी नगर में सुन्दर सेठ ने अपनी सात पुत्रियों के विवाह की पूर्ण तैयारी कर रखी है और लम्बोदर के आदेश से उनके लिए वर पाने की प्रतीक्षा में बैठा है। यह कौतुक की वस्तु थी । अतः उसे देखने के लिए उन देवियों ने वटवृक्ष को मन्त्र प्रभाव से उड़ाया और वे वलभी आ पहुँचीं कहना न होगा कि पुण्यसार भी वृक्ष के कोटर में बैठा हुआ वहीं आ पहुँचा। फिर दोनों देवियों नायिका के रूप में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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