Book Title: Mahopadhyaya Yashovijayjigani krut 101 Bol Sangraha Bhumika
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 5
________________ [25] एहवं व्यारव्यानविधि मां लिख्यूं छइ ते अयुक्त, जे मार्टि गुणस्थानक्रमारोहादिक ग्रंथइ अभव्यनिं व्यक्ताव्यक्त २ प्रकारि मिथ्यात्व कहिउं छइ ॥७॥ वली तिहां एहवूं लिख्यूं छइ, जे "एक पुदगलपरावर्त्त संसार शेष जेहनि होइ तेहनि ज व्यक्त मिथ्यात्व कहिइ" ते सर्वथा न घटइ, जे मार्टि तेहथी अधिक संसारी पणि पाखंडि व्यक्त मिथ्यात्वी ज कहिआ छइ अनें व्यक्त मिथ्यात्व ते गुणठाणुं छइ ॥ ८ ॥ "अनाभोगमिथ्यात्वि वर्त्तता जीव न मार्गगामी न वा उन्मार्गगामी कहिइ", एहवी कल्पना करि छइ ते कोइ ग्रंथि नथी अनि इम कहतां सघलई ३ राशि कल्पाइ ॥ ९ ॥ "अभव्य अव्यवहारिया मां" कहिया छइ ते उपदेशपदादिक ग्रंथ साथि तथा लोकव्यवहार साथि पणि न मिलइ ॥ १० ॥ व्यवहारिया तथा अव्यवहारिया (?) जीव सर्व, आवलिका असंख्येय भागसमयप्रमाण पुदगलपरावर्त्त पछी अवश्य मोक्षि जाइ, एहवूं लिख्यूं छई, तिहां कोइ ग्रंथनी साखि नथी । साहम् भुवनभानुकेवलिचरित्र, योगबिन्दु प्रमुख ग्रंथनी मेलि व्यवहारिया थया पछी अनंता पुलपरावर्त पणि दीसइ छइ ||११|| "सूक्ष्म पृथिव्यादिक ४ तथा निगोद २, ए छ भेद अव्यवहारिया कहिइ", एहवूं लिख्यूँ छइ ते न घटइ, जे मार्टि उपमितिभवप्रपंचा, समयसारसूत्रवृत्ति, भवभावनावृत्ति, श्राद्धदिनकृत्यवृत्ति, पुप्फमालावृत्ति, धर्मरत्नप्रकरणवृत्ति, संस्कृतनवतत्त्वसूत्रादिक ग्रंथनी मेलि प्रकट ज बादरनिगोदादिक व्यवहारिया जाणइ छइ, एक सूक्ष्मनिगोद ज अव्यवहारिया कहिया छइ ॥१२॥ "ए उपमितिभवप्रपंचादिकनां वचन, पत्रवणा साथि विरुद्ध अनाभोगपूर्वक एहवूं लिख्यूं छइ,” ते पूर्वाचार्यनी आशातनानूं वचन जिनशासननी प्रक्रिया जाणइ ते किम बोलइ ? ॥ १३ ॥ १. " तथा अव्यवहारिया" आटलो पाठ हांसियामां x आवुं चिह्न करीने कर्ताए मूक्यो छे पण ते क्यां उमेरको तेनुं सूचन/चिह्न जोवा मळतुं नथी; तेथी (2) साथे अहीं उमेरेल छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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