Book Title: Mahopadhyaya Yashovijayjigani krut 101 Bol Sangraha Bhumika
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ [35] "ते अनेषणीय आहारग्रहण केवलीनिं साबध नथी ते मार्टि तेहथी अपवाद न होइ, अनि जो छद्मस्थ अनेषणीय जाणई तो केवली भोजन न करइ. केवलीनी अपेक्षाई व्यवहारशुद्धि इम न होइ ते भणी अत एव रेवती अशुद्ध जाणइ छइ ते भणी तेहनो कर्यो कोलापाक महावीरिं न लीधो" एहवी कल्पना कर छइ पणि निरर्थक, जे मार्टि रात्रिहिंडनादिक छद्मस्थ दुष्ट जाणइ छइ तो पणि भगवंति अपवादि आदरिउं छइ, तथा निषिद्ध वस्तुलाभ जाणी उत्तमपुरर्षि आदरी ते अदुष्ट कही अपवाद न कहिइ तो अपवाद किहाँइ न होइ ।। ६५ ।। "जाणीनिं जीवघात करइ तेहज आरंभक कहिइ" एहवू कहइ छइ ते न मिलइ, जे मार्टि इम कहतां एकेन्द्रियादिक सूत्रि आरंभि कहिया छइ ते न घटइ ॥६६॥ "आभोगि जीवहिंसा अवश्यभावीपणइ पणि यतीनि होइ ज. नदी ऊतरता जलजीव विराधना होइ छइ ते पणि सचित्तता निश्चय नथी ते भणी अनाभोग-जन्याशक्यपरिहारइं" एहवं कहइ छइ ते न घटइ, जे मार्टि व्यवहार सचित्तता न आदरिइ तो सघलइ शंका न मिटइ, तथा नदीमां अनंतकाय निश्चई सचित्तपणि छइ. आगमथी निश्चय थई पणि देख्या विना अनाभोग कहीइ तो विश्वासी पुरुषि कहिया जे वस्त्रादिकि अंतरित त्रसजीव तेहनी विराधनाइं पणि अनाभोग थाइ ॥६७॥ “यतीनि अनाभोगमूल ज हिंसा होइ तेहमां स्थावर सूक्ष्म त्रसनो अनाभोग केवलज्ञान विना न टलइ अनि कुंथुप्रमुख स्थूल सनो अनाभोग घणी यतनाई टलइ. अत एव नदी ऊतरतां जल संयम दुराराधन कहिओ पणि कुंथुनी उत्पत्ति कहिओ ते मार्टि नदी ऊतरतां जलजीवनि अनाभोगि संयम न भाजई" एहवी कल्पना करइ छइ ते खोटी, जे माटिं त्रसनी परि थावरनो आभोग पणि यतीनिं करवो कहिओ छइ. अत एव ८ .सूक्ष्मादिक जोवानी यतना दशवैकालिकग्रंथिं प्रसिद्ध छइ ॥६८॥ एजनादिक्रियायुक्तस्यारम्भाद्यवश्यम्भावाद् यदागमः "जाव णं एस जीवे एयइ वेयइ चलइ फंदईत्या. यावदारंभे वट्टई" त्यादि. एहवू प्रवचनपरीक्षाई लुंपकाधिकारिं कहिउं छइ अनि सर्वज्ञशतकमां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22