Book Title: Mahopadhyaya Yashovijayjigani krut 101 Bol Sangraha Bhumika
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
"प्रतिलेखना प्रमार्जनादिक क्रिया क्षुद्रजंतु भयोत्पादकपणइ अपवादकल्प कहिइ ते छद्मस्थनूं लिंग केवलीनिं न होइ,' एहवू कहइ छइ ते न घटइ, ते (जे) मार्टि उत्सर्ग अपवाद टाली त्रीजो अपवादकल्प किहांइ कहिओ नथी. इच्छांइ ३ भेद कल्पि उत्सर्गकल्पनामि चोथो भेद कल्पतां पणि कुण ना कहइ ? तथा केवलिव्यवहारानुसार प्रतिलेखनादिक क्रिया पणि केवलीनि छइ ते प्रीछवू ।। ९३ ॥
"बिलवासी मनुष्य पणि जातिस्मरणादिकिं मांसभक्षण अतिनिंदित जाणी परिहरइ छइ, ते मार्टि मांसभक्षणथी सम्यक्त्वनो नाश ज होइ' एहवू लिख्यूं छइ ते न घटइ, जे माटिं मांसभक्षणनी परि परदारागमन पणि महानिंदित छइ तेहथी सत्यकिविद्याधर प्रमुखनि जो सम्यक्त्व न गयुं तो मांसभक्षणथी कृष्णादिकनुं सम्यक्त्व न जाइ तिहां बाधक नथी ।। ९४ ।।
"मांसाहार नरकायुर्बन्धस्थानक छइ ते माटि तेहनी अनिवृत्तिं सम्यक्त्व न होई" एहवू लिख्यूं छइ ते न घटइ, जे माटिं महारंभ-परिग्रहादिक पणि नरकायुबंधस्थानक छइ तेहनी अनिवृत्तिं प्रति जिम कृष्णादिकनि सम्यक्त्व छइ तिम मांसभक्षणनी अनिवृत्ति पणि सम्यक्त्व होइ तिहां बाधक नथी ।। ९५ ।।
"तए णं से दुवए राया कंपिल्लपुरं णगरं अणुप्पविसइ अणुप्पविसित्ता विपुलं असणं ४ उवक्खडावेइ उवक्खडावित्ता कोडंबिय पुरिसे सदावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवापुप्पिया ! विपुलं असणं ४ सुरं मज्जं मंसं पसन्नं च सुबहुपुप्फफलवत्थगंधमल्लालंकारं च वासुदेवपामोक्खार्ण रायसहस्साणं आवासेसु साहरह ते वि साहरति तए णं ते वासुदेवप्पामोक्खा विपुलं असणं ४ जाव पसन्नं असाएमाणा विहर(रं)ति" (ज्ञा.सू.१९८) ए षष्ठांगसूत्रवर्णनमात्र ज एहवू लिख्यूं छइ'' इम सद्दहतां नास्तिकपणूं थाइ, जे माटि स्वर्गादि सूत्र पणि वर्णनमात्र कहतां कुण ना कहइ ? ॥ ९६ ।।
"ए सूत्रमा वासुदेवनि मांसपरिभोग ते आज्ञा द्वारांइं जाणवो. आज्ञा पणि ते ते अधिकारीनी द्वाराई, पणि साक्षात् नहि' एहवी कल्पना करी छइ ते न घटइ. जे मार्टि आस्वादक्रियानो अन्वय वासुदेवप्रमुखनि कहिओ छइ तेहमांथी वासुदेवनि आज्ञाद्वाराई आस्वादनक्रियानो अन्वय कहिइ तो वाक्यभेद थाइ एहवी कल्पना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22