Book Title: Mahavira ka Swasthyashastra Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Adarsh Sahitya Sangh View full book textPage 8
________________ हैं । ध्वनि-चिकित्सा में मंत्रों का प्रयोग किया जाता है । गंध-चिकित्सा का संबंध पुष्प-चिकित्सा से है । रस-चिकित्सा मधु, कसैले आदि रसों के द्वारा की जाती है । स्पर्श-चिकित्सा हाथ की ऊर्जा और विद्युतीय संप्रेषण से की जाती है | वर्ण-चिकित्सा का संबंध सूर्य-रश्मि चिकित्सा अथवा रंग-चिकित्सा से है । व्यक्ति के आभामंडल में केवल वर्ण ही नहीं होता, गंध, रस और स्पर्श भी होता है । वर्ण आदि सभी तत्त्व अच्छे होते हैं तो आभामंडल स्वास्थ्य का हेतु बन जाता है । विकृत आभामंडल रोग पैदा करने वाला होता है । रोग और आरोग्य-दोनों आभामंडल की प्रतिकृतियां हैं । भगवान महावीर की वाणी में लेश्या अथवा आभामंडल वह दर्पण है, जिसमें प्रतिबिम्ब को भी देखा जा सकता है और बिम्ब की गतिविधि को भी देखा जा सकता है । अध्यात्म साधना केन्द्र,-दिल्ली (सन् १९९४) में पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी ने महावीर के अर्थशास्त्र पर प्रवचन श्रृंखला का इंगित किया और जैन विश्व भारती लाडनूं (सन् १९९६) में महावीर के स्वास्थ्य-शास्त्र पर प्रवचन करने का निर्देश दिया । सप्ताह में एक दिन रविवार को एक प्रवचन होता। कुल सोलह प्रवचन हुए और प्रस्तुत पुस्तक तैयार हो गई ।। प्रस्तुत पुस्तक के संपादन में मुनि दुलहराज और मुनि धनंजयकुमार ने निष्ठापूर्ण श्रम किया है । आचार्य महाप्रज्ञ १४ जून १९९७ तेरापंथ भवन गंगाशहर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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