Book Title: Mahavira Jivan Bodhini
Author(s): Girishchandra Maharaj, Jigneshmuni
Publisher: Calcutta Punjab Jain Sabha

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Page 334
________________ उ. ( ३०६ ) ___ महाराजा शिव बड़े संतोषी व धर्मप्रेमी थे। संसार से वैराग्य होने पर राज्य-त्याग कर वे दिशा-प्रोक्षक तापस बन गए और उग्न तप करने लगे। अ. ५४६ शिव तापस को तपश्चरण के कारण कौन-सा ज्ञान हो गया था ? उ. विभंगज्ञान। प्र. ५४७ शिव राजषि विभंगज्ञान में क्या जानने लगे थे? उ. शिवराजर्षि विभंगज्ञान से सात समुद्र व सात द्वीपों तक देखने-जानने लगे। प्र. ५४८ शिवराजर्षि ने विभंग ज्ञान होने के बाद क्या किया था ? शिवराजर्षि ज्ञान दृष्टि प्राप्त होने पर अपनी तपोभूमि से उठकर हस्तिनापुर गए और वहाँ लोगों से कहने लगे-"संसार भर में सात द्वीप व सात समुद्र ही हैं, बस इतना ही विशाल है-यह विश्व ।" इस तरह अपने नये सिद्धांत का प्रचार करने लगे । प्र. ५४६ गौतम गणधर ने हस्तिनापुर नगर में क्या चर्चा सुनी थी ? a

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