Book Title: Mahavira Jivan Bodhini
Author(s): Girishchandra Maharaj, Jigneshmuni
Publisher: Calcutta Punjab Jain Sabha

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Page 349
________________ ( ३२१ ) कथन भ्रांत प्रतीत होता है, अतः तुम्हें अपने मिथ्या कथन का आलोचना पूर्वक प्रायश्चित्त करना चाहिए ।" प्र. ६२१ इन्द्रभूति का कथन सुनकर आनन्द ने क्या कहा था ? आनन्द ने विनय किन्तु दृढ़ता के साथ उत्तर दिया - "भगवान् ! क्या निग्रंथ शासन में सत्य कथन करने पर भी प्रायश्चित्त करना चाहिए ?" मैंने जो कुछ कहा है, वह यथार्थ है, सत्य है, आप उसे मिथ्या कथन बता रहे हैं तो यह प्रायश्चित्त मुझे नहीं, आपको करना चाहिए ।" प्र. ६२२ इन्द्रभूति ने आनन्द की बात पर संशय होने पर क्या किया था ? उ. आनन्द को दृढ़ता पूर्वक कही गई बात से इन्द्रभूति का मन संशयग्रस्त हो गया, वे सीधे द्यति पलास चैत्य में आए, प्रभु के समीप जाकर आनन्द के साथ हुए वार्तालाप की चर्चा की। प्र. ६२३ म. स्वामी ने इन्द्रभूति का क्या समाधान किया था ? उ.

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