Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1978
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 13
________________ अध्यक्षीय अगर आज विश्व में धूमते घटना चक्र को व प्रोत्साहन से प्रेरित हो महावीर जयन्ती के पुण्य उसके वास्तविक रूप में मञ्च पर प्रस्तुत किया पर्व पर प्रतिवर्ष एक स्मारिका प्रकाशन का निश्वय जाय तो दृश्य इतना वीभत्स होगा कि मानवता रो किया था। प्रारंभ में उसके कदम लड़खडाये जरूर देगी, शायद उन दृश्यों को देखने का उसमें साहस मगर शीघ्र ही वे जम भी गये। अब तक उसके भी न होगा। कहीं काले गोरों में युद्ध छिड़ रहा है १४ अङ्क प्रकाशित हो चुके हैं तथा १५वां अङ्क यह तो कहीं एक दल दूसरे दल के लोगों के खून का आपके हाथ में है। यह स्मारिका वास्तव में एक प्यासा हो रहा है। कही एक जाति वाले दूसरी शोध तथा सन्दर्भ ग्रंथ है और विद्वत्समाज में वह जाति वालों के घर जला रहे हैं, उन्हें जीवित हा कितनी समाहत है इसका पता प्रतिवर्ष पाने वाले जलती आग में समर्पित कर रहे हैं तो कहीं मातृ- मैकडों प्रशंसापत्रों और पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित स्वरूपा स्त्रियों की इज्जत लूटी जा रही है, उनके होने वाली उसकी समीक्षाओं से लगता है । गतसाथ बलात्कार किया जा रहा है । मानव मानव वर्ष की स्मारिका पर आई हुई ऐसी सम्मतियों को का खून पीकर राक्षस बन गया है। रामायण काल प्रधान सम्पादक की इच्छा के विरुद्ध इस वर्ष हमने में तो एक ही रावण था लेकिन आज तो उनकी प्रकाशित करने का निश्चय किया है जिससे पाठकों गिनती ही नहीं की जा सकती। महावीर काल में को हमारे कथन की सत्यता का प्रत्यक्ष अनुभव हो तो पशुयज्ञ ही होते थे किन्तु आज तो नरमेघ हो रहे सके। हैं । महावीर काल में एक धर्म के उपासक दूसरे धर्म के उपासक ही से लड़ते थे तो आज एक धर्म इस वर्ष भी स्मारिका का सम्पादन श्री भंवर. के मानने वाले ही आपस में लड़ते हैं । जिधर देखो लालजी पोल्याका, जैनदर्शनाचार्य साहित्य शास्त्री उधर हिंसा का ही ताण्डव नृत्य । न दिन को चैन ने किया है। श्री पोल्याकाजी की यद्यपि वृद्धान रात को । किसी को यह विश्वास नहीं कि वस्था है और स्वास्थ्य भी खराब रहता है, किन्तु उसका जीवन इतने समय तक सुरक्षित है । अगर उन्होंने अपने स्वयं की चिन्ता किये विना पाठकों के गीता के इन व क्यों में सचाई है कि जब जब भी मनमोहने को सामग्री संकलित की है वह वास्तव में पृथ्वी पर अधर्म का साम्राज्य होता है भगवान् जिन शासन की महत्ता को निरन्तर कायम रखने पृथ्वी पर अवतार ग्रहण करते हैं तो भगवान के क का एक बहुत ही सफल प्रयास है । श्री पोल्याकाजी अवतार ग्रहण करने का इससे अधिक उपयुक्त समय ___ का कार्य, कर्तव्य निष्ठा, प्रेम, लगन सहृदयता फिर कब होगा मगर वह भी शायद आराम की और साक्षात् मानवीय गुणों को देख कर मेरी नींद सो रहा है। विश्व की घटनाओं की ओर श्रद्धा के सुमन स्वतः ही उनके चरणों में अर्पित हो उसका कोई ध्यान नहीं। भ. महावीर के उपदेशों रहे हैं। आज यदि यह कहा जावे कि महावीर के प्रसार प्रचार की, उनको अपने में उतारने की, जयन्ती स्मारिका एवं श्री भंवरलालजी पोल्याका आज की परिस्थितियों में उनके मूल्यांकन की प्राज एक दूसरे के पर्यायवाची हैं तो कोई अतिशयोक्ति जितनी आवश्यकता है इससे पूर्व कभी नहीं हुई। नहीं होगी। उनके लिये कुछ भी लिखा या कहा अाज से १६-१७ वर्ष पूर्व राजस्थान जैन सभा जावे तो उसके लिये कोई उपयुक्त शब्द मेरे पास ने स्व. पं. चैन सुखदासजी न्यायतीर्थ की सत्प्रेरणा नहीं हैं। मेरी ईश्वर से यही कामना है कि श्री www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International

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