Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 5
________________ SSZABORE निवेदन। - यों तो सारी जैन समाजमें कई महावीरचरित्र भनेक भाषाओंमें प्रगट होचुके है, तो भी भाजतक जिसके द्वारा अजैन समाजपर जैनधर्मकी प्राचीनता व उत्तमताकी छाप पड़े व जैनधर्मका हिन्द देश तो क्या विदेशमें भी प्रचार हो ऐसा कोई भी महावीरचरित्र उपलब्ध न होनेसे राष्ट्रीय-हिन्दी भाषामें एक ऐसे प्रन्थकी बड़ी भारी आवश्यकता थी। हर्ष है कि अब इस आवश्यक्ताकी पूर्ति हमारे परम मित्र व 'वीर' के उपसम्पादक यावू कामताप्रसादजी जैन अलीगंज निवासीने भतीष परिश्रम करके कर दी है। बाबू कामताप्रसादजीने इस प्रन्थकी रचना भाधुनिक प्रामाणिक शैलीपर ऐतिहासिक व तुलनात्मक दृष्टिसे अतीव परिश्रम करके की है, जिससे अजैन समाजमें जो यह भ्रम फैला हुआ है कि जैनधर्म तो बौद्धधर्मकी शाखा है व प्राचीन नहीं है उसका एवं महावीरस्वामीके प्रबंध में प्रचलित विविध शकाओका निवारण होकर वास्तवमें जैनधर्म कबसे प्रचलित है व इसके सिद्धांत कितने भनुपम तथा महावीरस्वामीका उससे क्या संवध है, यह सब सभ्य ससारके समक्ष दृष्टिगत होगा। इस प्रन्यके संपादन करनेमें रचयिताने कितना गाढ़ परिश्रम किया है उसका पता तो उन्होंने जो आगे हिन्दी व अग्रेजी २३ प्रन्यों की सूची (जिसकी सहायतासे यह प्रन्धराज तैयार हुआ है) दी है उससे लगता है तथा विशेष खूबी यह है कि उन्होंने इस प्रन्यमें कोई भी भाने नवीन विचार नहीं प्रकट किये है परन्तु नवीन शैलीपर प्राचीन आचार्य च विद्वानोके वाक्य ही भगवान महावीर पवित्र जीवनपर उड़न किये है। इस प्रन्यकी महत्वता इससे और भी बढ़ जाती है कि इस संशोधन हमारे माननीय विद्वान् वा चम्पतरायती रिष्ठर या

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