Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 11
________________ (५) विश्वास हो जाता है कि वास्तवमें महात्मा बुद्धके अनुसार ही भगवान महावीरने भी एक धर्म प्रकट किया था और वह जैनधर्म है । यही कारण है कि म० बुद्धके समान ही भगवान महावीरके प्रति उनकी दृष्टि गौरवपूर्ण नहीं रहती हैं। वह समझते हैं कि ईसासे पूर्वकी ९ वीं शताब्दिसे लेकर ईसाकी पहिली दूसरी शताब्दितक' चराबर म ० बुद्धका प्रभाव भारतवर्ष में सर्वत्र रहा, और भगवान महावीरका धर्म उनके ही निकट संबंधीजनोंके राज्योंमें सीमित रहा । कठिनतासे एकाध दफे वह भारतवर्ष में सर्वत्र प्रचलित हुआ । यहांतक कि विद्वानोंके निकट यह काल " बौद्ध काल " के नामसे विख्यात है । परन्तु वास्तवमें यथार्थ खोजके निकट यह भ्रम दूर हो जाता है और हमको ज्ञात होता है कि इस कालके अन्तर्गत समयानुसार जैन धर्म और बौद्ध धर्मकी समान प्रधानता रही है और साथमें हिदूधर्म भी अपनी शक्तिको एकत्रित करता जा रहा था । अतएव पूर्वी - भाषा-भाषी विद्वानोंके शुभ प्रयत्नोंके उपरांत भी सभ्य संसारके मध्य उपर्युक्त प्रकारके मिथ्या भ्रमं घर कर रहे हैं जिनके कारण वह जैनधर्मके मनन करनेसे कुछ नवीन संदेश पानेकी आशा नहीं रखते हैं । उनके इन 1 भ्रमोंका औचित्य दिखलानेके लिए भी इस पवित्र 'जीवनी' के लिखनेका साहस किया गया है। इसके पाठ करनेसे साधारण रूप में सत्य खोजी मस्तिष्कको ज्ञात हो जायगा कि वास्तवमे जैन धर्म क्या है ? वह कबसे है ? और उसका भगवान महावीरके साथ क्या सम्पर्क है ? भगवान महावीरका दिव्य प्रभाव उनके समय में कितना दिगन्तव्यापी था कि स्वयं म० बुद्धने उनके जीव

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