Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 13
________________ * Characteristic of Todisn narrative art die tho narratives of tho Jaias. They describe the life and mannois of the Indian population in all its different classes and in full accordance with reality. Hence Jain Darm live literature is amongst the most precious sound, not only of folkloze in the wost comprehousive sonse of tho void but also of the history of Indian Civilisation." - Dr. Foernle. वस्तुतः डॉ. हर्नलके उक्त शब्दोंसे नेन ग्रन्थोंकी प्रमाणिकता प्रगट है । अतएव कहना होगा कि हृदयकी पवित्र भक्तिके साथर उक्त बाह्य कारणोसे प्रेरित हो इस प्रथम प्रयत्नका प्रयास किया गया है । मैं नहीं जानता कि मै उसमें कहांतक सफलमनोरथ हुआ हूं। मुझे तो आशा है कि इस अनधिकार प्रयत्नमें मुझसे यथार्थ चरित्रके चित्रन करने में भी शायद त्रुटिया होगई हैं, क्योंकि वह मनुष्यके लिए स्वाभाविक है । उनकी निवृत्ति के लिए केवल एक मार्ग यही है कि विनयरूपमें विद्वत्समाजके निकट यह निवेदन किया जाय कि ऐसी त्रुटियोसे वह मुझे मूचित करदे जिससे आगामी उनका सुधारकर दिया जावे। ___ यद्यपि मैंने ऊपर कहा है कि इस जीवनीको लिखना मेरा प्रथम-प्रयास है, परन्तु एक तरहसे मेरा इसमें कुछ भी नहीं है। जो कुछ भी पूर्वागामी महत् पुष्यवान महान विद्वानोंने प्रकट किया था, उसको ही मैने नवीन रूप दिया है और उतना ही श्रम मात्र मेरा है । इसपर भी बहुत कुछ श्रेय मेरे मान्य मित्र श्रीमान् चम्पतरायनी जैन, वैरिष्टर-एट-ला, हरदोई पर निर्भर

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