Book Title: Mahavir Jin Stavan Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 5
________________ १२६ अनुसंधान- २६ जातिगरभ नव्य कीजइ भाई, लाभतणो मद तजीइ रे । उंच कुंलांनुं मांन करंतां, नीचकुलां जइ भजीइ रे || ० |२८|| प्रभुता निं ए बल मद वारो रूप मान एकमनो रे । सनतकुमार जुओ जगि चकवइ, अंगि रोग उपनो रे || आ० | २९ ॥ तप मद करतां पूण्य पलाइ, श्रुतमद मुरिख थाईइरे । कहइ जीनराज सूणो रे लोगां, चोखइ च्यंति रहीइ रे || आ० |३०|| * ढाल ॥ कहइणी करणी तुझ व्यण साचो ॥ आठि मद जीप्या जीन वीरई, कीधो जगह प्रकासो जी । शंघ चतुरवीध्य स्वामी थापइ, हरी लावइ तीहा वासो जी । आठइ मद जीप्या जीन वीरइं ॥ आचली ॥३१॥ चउंद हजार मुनीवर अतीमोटा, गणधरवर अग्यारो जी । छत्रीस हजार अजीआ त्यांहा दीखी, निरमल जस आचारोजी || आ०|३२|| एक लाख उपरि वली भाषे, ओगणसठि हजारो जी । श्रावक वीरतणा ए वारू, नीपण सूखी दातारो जी || आ०|३३|| सूलसा परमुख त्रयं लष्य कहीइ, अज्जकी सहइस अढारो जी । वीरतणी ए सुदर श्रावीका, सती सरोमणि सारो जी || ० |३४| ए परीवार श्रीजिनवर केरो, नमीइ बड़ कर जोड्योजी । शंघ चतुरवीधि स्वामीकेरो, तपज्यो सागर कोड्यो जी || आ० |३५|| अनुकरमिं प्रभु वीहार करता, आरय अनारय देसो जी । पापानगरी माहझं पोहोता, टालइ काय कलों (ले) स्यो जी || आ० ||३६|| नामकरम निं बीजु आउंषु वेदनी गोत्र वीचार्यो जी । च्यारे कर्मनि वीर खेपवी, पोहोता मुगत्य मझार्यो जी || आ० ३७॥ संवत अंग अंग अंग चंदि आसो मास दीवालीजी ! श्रीगुरुवारि त्रंबवती म्हां, थंभण पास नेहालीजी || आ० |३८|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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