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नारी शक्ति का प्रतीक - मुनि श्री नवीन चन्द्र विजय जी
नारी शक्ति की वह पताका, जब तक जीवन है प्रवहमान । रहेगी फहरती, इठलाती, नीचा न कर सके युग प्रवाह ।। नारी का अर्चन होता जहाँ, सुख, चैन बसर होता वहाँ । जहां प्रताड़न होता उसका, सुख का न लवलेष वहाँ ।। नारी को न आंको अबला, वह महाशक्ति महा चेतना। वह निर्मात्री इस जग की लाती इस भू पर महा प्रेरणा ।। निखिल जगत में शाश्वत वही, आवृत्त है ब्रह्माण्ड उसी से। कुसुमों से कोमल, वज्र भी, . कण-कण है अभिसिक्त उसी से। प्रेम की गंगा, दिव्य ज्योति वह, थी 'महत्तरा' उसकी प्रतीक। साध्वी चंदना की स्वर्ण परम्परा, करा दिया पुनः जागरण प्रतीत ।।
મહત્તરા થી મૃગાવતીથીજી -
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