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कहाँ जा रहे हो?
सुशील कुमार "रिंद"
कहां जा रहे हो रहनुमां हमारे । अभी बहने दो अमृत के धारे || कहाँ जा....... अभी काम बहुत अधूरे पड़े हैं, अभी कुछ मसायल तो यूं ही खड़े हैं। हैं दरकार कुछ और एहसां तुम्हारे ॥ कहां जा....... स्मारक तुम्हें था जो जां से भी प्यारा, हो तामीर जल्दी अहद था तुम्हारा । शुरू करके अब हो रहे हो किनारे ॥ कहां जा......
तुम ॥
स्वर्गों की खुशियों से मसरूर तुम, जहां भर की तकलीफों से दूर तड़पते सिसकते हैं सेवक तुम्हारे || कहां जा........ निगाहों में आंसू दिलों में हे हलचल, बिखरने को है कुछ लम्हों में ये महफिल ।। अगर चाँद तुम हो तो हम हैं सितारे ॥ कहां जा.........
स्मारक से जोड़ी है अपनी कहानी, रहेगी युगों तक ये तेरी निशानी ।।
ये कुरबानी तेरी के होंगे नज़ारे ॥ कहां जा........
अभी जाने की भी कोई ये उमर थी, चौरासी में चौबीस की रिंद कसर थी ।
ये नाराजगी के हैं लगते इशारे ॥ कहां जा........
कहा जा रहे हो रहनुमां हमारे। अभी और बहने दो अमृत के धारे। कहां जा रहे ....
મહત્તરા શ્રી મૃગાવતીશ્રીજી
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