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ग्रंथों में प्राकृत मार्गोपदेशिक, हेमचंद्राचार्य के समान मूल रचनाओं के साथ धम्मपद और जैनदर्शन इन अनूदित ग्रंथों की महिमा बडी है. बेचरदास जी द्वारा संपादित - अनूदित ग्रंथों में भगवती सूत्र (खंड दो) प्राकृत व्याकरण, महावीर वाणी इन ग्रंथों का मुख्यतः अंतर्भाव किया जा सकता है.
संस्कृत भाषा का पांडित्य और क्रांतदर्शी सत्यनिष्ठा इन गुणों के कारण तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन जी ने प्रमाणपत्र प्रदान कर विशेष रुप से उन्हें गौरवान्वित किया. विविध संस्था, संगठन तथा शैक्षिक संकुलों ने समय-समय पर उन्हें सम्मनित किया. उन्होंने सात स्वर्ण पदक प्राप्त किए. महाविद्यालय से अवकाश ग्रहण कर लेने के उपरांत भी उन्होंने अपनी सेवाएँ अर्पित कीं. पी-एच्.डी के अनेक छात्रों को मार्गदर्शन किया. ११ अक्तुबर १९८२ को अपनी उम्र के ९३ वें साल में वे अनंत में विलीन हो गए. जैन साहित्य तथा जैन संस्कृति के रक्षण तथा संवर्धन में वे आजीवन सक्रिय रहे. देश सेवा की. कारावास झेला. अपनी ज्ञान निष्ठा को अखंड रखा. वे सत्यवीर क्रियाशील पंडित थे.