Book Title: Mahatma Gandhiji ke Jain Sant Sadhu
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 20
________________ तनावों का ताना-बाना होते हुए भी अपने साथ गाँधी जी धार्मिक ग्रंथ अवश्य रखते. यथासंभव उसे पढते, चिंतन करते. व्यवहार्य भूमिका समझते-समझाते. यह केवल गाँधी जी ही कर सकते थे. अपने समय के सखा-सहयोगियों की चर्चा करते हुए पंडित जी की आत्मकथा में मित्र, सहयोगी, मार्गदर्शक तत्त्वचिंतकों की सूची में रमणिकलाल मोदी, आचार्य कृपलानी, सुचेता कृपलानी के भरपूर उल्लेख आए हैं. अपने ' दर्शन और चिंतन ' ग्रंथ में पंडित जी ने गाँधी जी के साथ ही विनोबा जी, जिनविजय जी, धर्मानंद कोसंबी इन साधक सहयोगियों का भी गौरवपूर्ण उल्लेख किया है. ' गाँधी जी और जैनत्व ' तथा ' गाँधी जी का जीवन धर्म ' शीर्षक के दो लेख तो जिज्ञासुओं को मूल में जा कर ही पढने चाहिए. गाँधी जी और जैन धर्म का विचार प्रतिपादित करते हुए वे लिखते हैं कि एक बहुत ही आश्चर्यकारक बात है कि आज दुनियाभर में फैले हुए नाना पंथोपपंथ के जानकार प्रयत्नों में लगे हैं कि गाँधी जी उनके धर्म का स्वीकार करें लेकिन उनका अपना जो सनातन हिंदू धर्म है वह उनके बारे में सहानुभूति व्यक्त करते हुए नहीं दिखाई देता. सच्चा महान पुरुष अपने व्यक्तित्व के इर्द गिर्द किसी भी प्रकार के धर्म-पंथ-मत-तत्ववाद की परिधि नहीं निर्मित करता. यह विचार प्रस्तुत कर पंडित जी ने अपने लेख का समापन किया है. पंडित जी गाँधी जी की धर्मकल्पना को नवीन मानते हैं. पुराने पर नए का कलम करने वाला उनका धर्म विचार सही माने में जीवनधर्म है ऐसा लिखने वाले पंडित जी की सार्थ दृष्टि है. गाँधी जी इस भूतल पर ही मोक्ष और स्वर्ग की संभावना से भरपूर रहे. वे अनन्य हैं. उनका जीवनधर्म जीवनस्पर्शी, ईहवादी और परमार्थ युक्त है यह पंडित जी का निष्कर्ष है.

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