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गाँधी जी ने एक पत्र के माध्यम से राजचंद्र जी को सत्ताईस प्रश्न तथा आठ उप प्रश्न पूछे हैं लेकिन न थकते हुए और बिना संक्षेप किए बिना राजचंद्र जी ने पत्रों का सविस्तार उत्तर दिया है. अपने ११ अक्तुबर १८७४ के पत्र में उन्होंने गाँधी जी के लिए संबोधन किया है- " आत्मार्थी गुणग्राही सत्संग योग्य बंधुवर मोहनलाल, दर्बान की सेवा में मुंबई से जीवन्मुक्त दशा के इच्छुक राजचंद्र के आत्मस्मृतिपूर्वक यथायोग्य प्रणाम ! " टॉल्स्टॉय और थोरो के प्रभाव के साथ गाँधी जी ने राजचंद्र जी का भी कृतज्ञ स्मरण किया है. इसका प्रमुख कारण यह है कि राजचंद्र जी अपनी राय व्यक्त तो करते हैं, लादते नहीं है. वे जैन परंपरा के अनेकांतवादी विचारधारा के उपासक थे. टॉल्स्टॉय से गाँधी जी का पत्र-व्यवहार हुआ है. अपनी अनाग्रही वृत्ति-दृष्टि के कारण राजचंद्र जी को पूछे हुए प्रश्न उनके अध्ययन-चिंतन की दिशा को स्पष्टता देने वाले हैं. उन प्रश्नों का अध्ययन एक विशेष संदर्भ है. गाँधी जी ने पूछा था कि क्या रामावतार एवं कृष्णावतार सत्य है ? अगर यह सत्य है तो दोनों साक्षात् ईश्वर थे या ईश्वरांश ? उनकी आराधना करने से क्या मोक्ष मार्ग सुगम हो सकता है ? इन प्रश्नों के उत्तर में राजचंद्र जी लिखते हैं कि जी हाँ, दोनों महात्मा पुरुष हैं. आत्मवान होने के कारण इन दोनों को ईश्वर माना जा सकता है. ... ... दोनों को अव्यक्त ईश्वर रुप मानने में कोई बाधा नहीं ... ... मोक्ष प्राप्ति की दिशा केवल अन्यान्य उपासना की नहीं है. आत्मतत्व में जब महात्म तत्व का बोध होगा तब मोक्ष संभव होगा. गाँधी जी ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश इन देवताओं के स्वरुप को जानना चाहा था. इसके उत्तर में राजचंद्र जी लिखते हैं कि सृष्टि के तीन गुणों की कल्पना कर उनके आश्रय स्थान इन त्रिदेवों का विचार किया जा सकता है. उनके पुराण वर्णित रुपबंध से वे अपनी सहमति नहीं व्यक्त करते हैं. पत्रोत्तर के समापन में हस्ताक्षर करते हुए राजचंद्र जी लिखते हैं" आत्मस्वरुप के विषय में अखंड निष्ठाभूत विचार के चिंतन में रमने वाले राजचंद्र के प्रणाम कृपापूर्वक स्वीकारें ! " पत्र के उत्तर के साथ उन्होंने गाँधी जी को अनेक बार कुछ ग्रंथ भी अध्ययनार्थ प्रेषित किए हैं. इनमें निम्नलिखित ग्रंथों का समावेश होता हैं - पंचीकरण, मणिरत्नमाला, योगवशिष्ठ ग्रंथ का मुमुक्षु प्रकरण हरिभद्रसूरि जी के ' षड्दर्शन समुच्चय ' ग्रंथ का उल्लेख तो स्वयं गाँधी जी की आत्मकथा में भी पाया जाता है. इस पत्र व्यवहार के माध्यम से गाँधी जी को शांति का लाभ हुआ. धैर्य पूर्वक हिंदू धर्म का गहन अध्ययन करने की प्रेरणा मिली. राजचंद्र जी ने हिंदू धर्म को सूक्ष्म ज्ञानयुक्त गहन गूढ धार्मिक विचार से संपृक्त धर्म माना. धार्मिक क्षेत्र में अहिंसक विचार, तत्वचिंतन में अनेकांतवाद, नैतिक क्षेत्र में व्रतनिष्ठा गाँधी जीवन एवं जीवन दर्शन का बल स्थान है.