Book Title: Mahabandho Part 7
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 18
________________ विषय क्षेत्रप्ररूपणा क्षेत्ररूपणा के दो भेद उत्कृष्ट क्षेत्रप्ररूपणा अपन्य क्षेत्ररूणा स्पर्शनप्ररूपणा स्पर्शनरूपणा के दो भे उत्कृस्पर्शनरूपणा जघन्य स्पर्शनप्ररूपणा कालप्ररूपणा कालप्ररूपणा दी भेट उत्कृष्ट कालप्ररूपणा जघन्य कालप्ररूपणा अन्तरप्ररूपणा अन्तरप्ररूपणा के दो भेद उत्कृष्ट अन्तरप्ररूपणा जघन्य अन्तर प्ररूपणा भावप्ररूपणा भावप्ररूपणा के दो भेद उत्कृष्ट भावप्ररूपणा जघन्य भावप्ररूपणा अपबहुत्प्ररूपणा अप्ररूपणा के दो भेद स्वस्थान अल्पबहुत्वके दो भेद उत्कृष्ट स्वस्थान अल्पबहुत्व अपन्य स्वस्थान अल्पबहुत्व परस्थान अल्पबहुत्व के दो भेद उत्कृष्ट परस्थान अव जघन्य परस्थान अल्पबहुत्व भुजगारबन्ध अर्थपद तेरह अनुयोगद्वारीका निर्देश समुत्कीर्तनानुगम विषयानुक्रमणिका पृष्ट विषय १-६ स्वामित्वानुगम १ कालानुगम १-४ अन्तरानुगर्म ५-६ ७-५८ Jain Education International 67 ७-४५ ४५-५८ ५१-६३ ५६ ५६.६१ ६२-६३ ६३-६४ ६३ ६२.६४ ६४ ६५ ६५ ६५ ६५ ६५-१०५ ६५ ६५ ६५-७५ ७५-८१ ८१ ८१-१२ ६४-१०५ १०१-१६७ १७५ १०५ १०६.१०७ भागाभागानुगम परिमाणानुगम क्षेत्रानुगम स्पर्शनानुगम कालानुगम अन्तरानुगम भावानुगम अल्पबहुत्वानुगम पनिष तीन अनुयोगद्वारोंका निर्देश समुत्कीर्तना समुत्कीर्तनादो मेद उत्कृष्ट समुत्कीर्तना अन्य समुत्कीर्तना स्वामित्व स्वामित्व के दो भेद उत्कृष्ट स्वामित्व अन्य स्वामित्व अल्पबहुत्व अपके दो भेद उत्कृष्ठ अल्पचत्य जघन्य अप अजघन्य वृद्धि आदिके विषय में सूचना वृद्धिवन्ध तेरह अनुयोगद्वारोंकी सूचना समुत्कीर्तना स्वामित्व काल पृष्ठ १०८ १०६ ११०-१११ ११२-१४६ For Private & Personal Use Only १५० १५०-१५२ १५३ १५३-१८० १८० १८७ १८८-१६१ १६१ १६१-१६७ १६७-२२६ १६७ १ अन्तरकाल के अन्तका अंश, भंगविषय पूरा और भागाभाग की अन्तकी एक पंक्तिको छोड़ कर पूरा भागाभाग त्रुटित है । १६७-१६८ १६७ १६७-१६८ १६८ १८-२२५ १६८ १६८-२२३ २२३-२२५ २२५-२२६ २२५ २२५-२२६ २२६ २२६ २२७-३०१ २२७ २२७-२२६ २३० २३५ २३५-२३६ www.jainelibrary.org

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