Book Title: Madhyakalin Hindi Sahitya me Varnit Sadguru Satsang ki Mahtta
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf

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Page 6
________________ . द्यानवराय कबीर के समान उन्हें कृतकृत्य मानते हैं जिन्हें सत्संगति प्राप्त हो गयी है। भूधरदास सत्संगति को दुर्लम मानकर नरभव को सफल बनाना चाहते हैं-- प्रभु गुन गाय रे, यह औसर फेर न पाय रे ।। मानुष भब जोग दुहेला, दुर्लभ सतसगति मेला। सब बात भली बन आई, अर्हन्त भजो रे भाई ॥10॥ चन्द्र क्रांति मनि प्रगट उपल सौ, जल ससि देख झरत सरसाई ।। लट घट पलटि होत षटपद सी, जिन को साथ भ्रमर को - थाई । विकसत कमल निरखि दिनकर कों, लोह कनक होय पारस छाई ।। बोझ तिरै संजोग नाव के, नाग दमनि लखि नाग न खाई । पावक तेज प्रचड महाबल, जल परता सीतल हो जाई ।। संग प्रताप भयंगम जै है, चंदन शीतल तरल पटाई। इत्यादिक ये बात घणेरी, कौलों ताहि कहीं जु बढ़ाई ॥ दरिया ने सत्संगति मजीठ के समान बताया और नवलराम ने उसे चन्द्रकान्तमणि जैसा बताया है। कवि ने और भी दृष्टान्त देकर सत्संगति को सूखदायी कहा है सतसंगति जग में सुखदायी । देव रहित दूषण गुरू साँचो, धर्म दया निश्चै चितलाई ॥ सुक अति मैना संगति नर की करि, परवीन वचनता पाई। इसी प्रकार कविवर छत्रपति ने भी संगति का महात्म्य दिखाते हुए उसके तीन भेद किये हैं-उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य 146 43. कर-कर सपत संगत रे भाई ॥ पान परत नर नरपत कर सो तो पाननि सौ कर असनाई ।। चन्दन पास नींव चन्दन है काठ चढयो लोह तरजाई। पारस परस कुधात कनक व बूद उर्द्ध पदवी पाई ॥ करई तोवर संगति के फल मधुर मधुर सुर कर गाई।। विष गुन करत संग औषध के ज्यों बच खात मिटै वाई ।। दोष घटै प्रगटै गुन मनसा निरमल ह तज चपलाई। द्यानत धन्न धन्न जिनके घट सत संगति सरधाई॥ हिन्दी पद संग्रह, पृ. 137. 44. हिन्दी पद संग्रह, पृ. 155. 45. वही, पृष्ठ 185-86. 46. देखो स्वांति ब्रद सीप मुख परी मोती होय : केलि में कपूर बांस माहि बंसलोचना। ईख में मधुर पुनि नीम में कटुक रस; पन्नग के मुख परी होय प्रान मोचना ।। २२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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