Book Title: Madhyakalin Hindi Sahitya me Varnit Sadguru Satsang ki Mahtta Author(s): Pushpalata Jain Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 7
________________ इस प्रकार मध्यकालीन हिन्दी जैन साधकों ने सन्देह सत्संगति का प्रभाव है। यहां यह दृष्टव्य है कि विभिन्न उपमेयों के आधार पर सदगुरू और उनकी जैनेतर कवियों ने सत्संगति के माध्यम से दर्शन की सत्संगति का सुन्दर चित्रण किया है। ये उपमेय एक- बात अधिक नहीं कि जबकि जैन कवियों ने उसे दर्शन दसरे को प्रभावित करते हुए दिखाई देते हैं जो नि:- मिश्रित रूप में अभिव्यक्त किया है। अंबुज दलमिपरि परी मोती सम दिप, सपन तबेलै परी नस कछु सोचना। उतकिस्ट मध्यम जघन्य जैसी संग मिले, तैसो फल लहै मति पोच मति पोचना 1114711 मलय सुवास देखो निबादि सुगंध करै, पारस पखान लोह कंचन करत है। रजक प्रसंग पट समलतें श्वेत करै, भेषज प्रसंग विष रोगन हरत है। पंडित प्रसंग जन मूरखतें बुध कर, काष्ठ के प्रसंग लोह पानी में तरत है। जसो जाको संग ताकी तेसो फल प्रापति है, सज्जन प्रसंग सब दुख निरवत है / / 14811 मन मोदन पंचशती, पृ. 70-71. 230 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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