Book Title: Kumarsambhavadi Mahakavya Chatushkaritya Stotra Chatushtayi Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ 32 अनुसंधान-२३ बनावे छे. नायिकानी विह्वल अने तेथी करुण मनोदशानुं वर्णन करी बताववामां कविए धारी सफलता हांसल करी छे. त्रीजी रचना 'रघुवंश' ने अनुसरे छे. प्रथम सर्ग अनुष्टुप् छन्दमां छे, 'वाग्' शब्दथी तेनो प्रारम्भ छे, अने रघु-वंशनु तेमां विस्तृवर्णन छे; ते प्रमाणे अहीं पण अनुष्टुभ् छन्द द्वारा इक्ष्वाकुओना वंशनु-ऋषभदेवना वंश- कवि मजानुं वर्णन आपे छे; प्रारम्भ करे छे 'वाग्' शब्दथी ज. चोथी रचना ते 'जिनशतक'ना एक परिच्छेदनी अनुकृतिरूप छे. विक्रमना १०मा शतकमां थयेला विद्वान जैन मुनि-कवि जम्बूनागे १०० श्लोक अने चार परिच्छेदात्मक महाकाव्य रच्यु छ : जिनशतक. तेमां स्रग्धरा छन्दमां, २५-२५ पद्योना चार विभागोमां, जिनभगवानना एकेक अंगनुं अनुपम वर्णन करेल छे. अर्थालंकारो तथा अर्थगाम्भीर्यथी छलकाता ते काव्यने शब्दालंकारोनी विशिष्ट चमत्कृतिथी कविए एवं तो मढी दीधुं छे के तेने 'महाकाव्य' तरीके ओळखवामां कोई ज खचकाट अनुभवातो नथी. तेना प्रथम परिच्छेदमां आवता 'जिन-पादवर्णन' ने विषय बनावीने कर्ताए ते ज छन्दमां ते ज रीतिए २५ पद्योनी रचना अहीं आपी छे. २६मां पद्यमां कर्ताए ज 'जिनशतक'ने 'महाकाव्य' लेखे ओळखाव्यु छे. तेम ज तेमां थएल सूचना मुजब आ काव्य, पादपूर्तिरूपे होवानुं समजाय छे. (आ क्षणे, विहारयात्रामा होवाने कारणे, पुस्तकोनी अनुपस्थितिमां, आ मुद्दे स्पष्ट विधान करवानुं शक्य नथी.) कर्तार्नु नाम गणि रविसागर छे, अने तेमना गुरुनु नाम पं. राजपालगणि छे. आ राजपालगणि- नाम पं. राजसागर होवा, अने तेओ वाचक हर्षसागरना शिष्य होवामुं, कर्ताए स्वयं रघुवंशानुकृत काव्यमा २६मा पद्यमां सूचव्युं छे. गच्छनो तथा समयनो उल्लेख नथी. पण अनुमानतः तपगच्छ अने सत्तरमो शतक लागे छे. आ कृतिनी प्रति उदयपुरना हाथीपोळ सरायना भण्डारमा छे, जे परथी तेनी जेरोक्स नकल मेळवीने मित्र मुनि श्रीधुरन्धरविजयजीए मोकलेली, तेना आधारे आ संपादन थयुं छे. जेरोक्स उकेलवामां जरा कष्ट थाय तेम खरं. केटलेक स्थाने छूटी गएला अमुक पदो तथा चोथी रचनागत २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17