Book Title: Kumarsambhavadi Mahakavya Chatushkaritya Stotra Chatushtayi
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ श्रीरविसागरगणिकृता कुमारसम्भवादिमहाकाव्यचतुष्करीत्या स्तोत्रचतुष्टयी ॥ सं. विजयशीलचन्द्रसूरि मध्यकालना जैन मुनिओए संस्कृतभाषामां जे रचनाओ करी छे ते जेम विपुल मात्रामां छे तेम अद्भुत अने सर्जक प्रज्ञाना विलक्षण उन्मेषोथी छलकाती पण छे. हस्तप्रतिओमां, अने हवे तो अढळक मुद्रित सामग्रीमां पण, आवी नानी मोटी रचनाओने अवलोकीए छीए, त्यारे आ वातनो यथार्थ ख्याल अवश्य आवे छे. सद्गत विद्वान प्रा. हीरालाल रसिकदास कापडियाए " जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास" लख्यो छे, तेमां एक स्वतंत्र ग्रन्थ लखीने उमेरवो पडे तेटली कृतिओ तो ते पछी, प्रकाशमां आवी गई छे. अने प्रकाशमां न आवेली कृतिओनो जथ्यो तो हजी एवा केटला ग्रन्थ मागशे तेनी कल्पना ज करवी पडे. 'अनुसन्धान' आरंभायुं त्यारे तेनो प्रधान आशय प्राकृत संस्कृतना क्षेत्रनी माहिती आप्या करवानो अवश्य हतो, पण ते साथे ज, संप्रा. रचनाओना संपादन - प्रकाशननो पण आशय हतो ज, अने ते आशयनुं शक्य विशेष प्रमाणमां अनुसरण थई रह्युं छे, ते सन्तोषप्रद छे. अत्रे आपेली कृति, एक विलक्षण 'वस्तु' लईने आवे छे. संस्कृत साहित्यनां प्रसिद्ध त्रण महाकाव्यो तथा एक अद्भुत जैन महाकाव्यनी अनुकृतिरूप चार अलग अलग स्वतंत्र रचनाओ आ कृतिमां छे. - जैन चित्रकलामां 'लघुचित्रो 'नुं खूब चलण रह्युं छे. अजन्ता इलोराना बृहत्काय भित्तिचित्रोनुं अत्यन्त लघु अने नाजुक अनुसरण एटले जैन पोथीओमां सांपडतां 'लघु चित्रो' - Miniatures'. ते ज रीते शिल्पकलाना क्षेत्रमां जैनोमां 'अवतार चैत्यो 'नुं व्यापक महत्त्व रह्युं छे. जेवा के शत्रुंजयावतार चैत्य, गिरनारावतार चैत्य वगेरे. पहेलां तो आखुं स्वतंत्र चैत्य (देरासर) बंधातुं, अने तेमां आदिनाथनी मूर्ति बेसाडी ते चैत्यने 'शत्रुंजयावतार चैत्य' जेतुं नाम अपातुं. कालान्तरे, पाषाणना तथा पछीथी धातुमय पट्ट बनवा मांड्या. तेमां केन्द्रमां जे ते तीर्थना मुख्य भगवान स्थापवामां आवता, अथवा जे ते तीर्थनी प्रतिकृति दोरवामां आवती; अने तेने ते ते 'तीर्थावतार' प्रतिमारूपे ओळखवामां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 17