Book Title: Kuch Videshi Lekhako ki Drushti me Jain Dharm aur Mahavir Author(s): Mahendra Raja Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 7
________________ -0-0---0-0-0--0--0--0-0 महेन्द्र राजा : विदेशी लेखकों की दृष्टि में जैनधर्म और महावीर : २७७ करीब दो हजार वर्ष से भी अधिक समय पहले एक उच्च क्षत्रिय वंश के राजकुमार ने साधारण जन की भांति रहकर जनसाधारण को इतना अधिक प्रभावित किया और उन्हें ऐसा नैतिक उपदेश दिया कि उनके बाद से अब तक वह उपदेश अमिट रहा है. संसार के सभी धर्मों में महावीर के सिद्धान्त किसी-न-किसी रूप में विद्यमान हैं. जिस व्यक्ति ने 'आत्मा' का महत्त्व बतलाया, सरल और सादे जीवन पर जोर दिया, जिसने पशु-पक्षियों को भी मानव के समकक्ष रखा तथा यह बतलाया कि वे भी मानव के समान सुख-दुख का अनुभव करते हैं, उसे हम सर्वोच्च सम्मान व श्रद्धा नहीं दें तो फिर और किसे देगें ? एक ओर जहाँ श्री पाइक ने जैनधर्म एवं महावीर की प्रशंसा में इतना अधिक लिखा है, तथा बच्चों के लिए लिखी गई उक्त पुस्तक में जैनधर्म की बहुत प्रशंसा की है, तो दूसरी ओर अमेरिका में प्रकाशित कालेज स्तर की एक पाठ्य पुस्तक में केवल कुछ ही पैराग्राफों में जैनधर्म को चलता कर दिया गया है. इस पुस्तक के लेखक हैं श्री जार्ज ए. बार्टन और पुस्तक का नाम है 'दी रिलिजियन्स आफ दी वर्ल्ड'. श्री बार्टन लिखते हैं-बौद्धधर्म के समान ही जैनधर्म भी ब्राह्मण धर्म के विरोध में एक आंदोलन के रूप में प्रारंभ हुआ. जहाँ तक ईश्वरों का प्रश्न है, महावीर गौतम से भी बढ़ गए. गौतम ईश्वरों का अस्तित्व मानते थे लेकिन उनकी पूजा के हिमायती नहीं थे. महावीर ईश्वरों को मानते ही नहीं थे पर गौतम के समान पुनर्जन्म एवं कर्म के सिद्धान्त को उन्होंने माना. जैनधर्म के ५ मुख्य (आचारसंबंधी) सिद्धान्त हैं, जिनके आधार पर उसके अनुयायियों को हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह से बचाने का प्रयास किया गया है. यद्यपि बौद्धधर्म में भी कुछ इसी प्रकार के ५ नियम हैं, पर यह कहना गलत होगा कि जैन धर्म ने उन्हें बौद्धधर्म से लिया या बौद्धधर्म ने जैनधर्म से. प्रसिद्ध लेखक जैकोबी के मतानुसार इस बात की संभावना अधिक है कि दोनों पर हिन्दू धर्म का प्रभाव पड़ा. जैन लोग अहिंसा के सिद्धान्त को इतना अधिक आगे मानते हैं कि वे (मनुष्येतर) जीवहत्या को भी बहुत ही बड़ा मानते हैं. शायद यही कारण है कि भारत के प्रत्येक ग्राम और नगर में, जहाँ जैनियों की कुछ बस्ती है, कोई न कोई पशुचिकित्सालय आवश्य है. ई० डब्ल्यू. होपकिन्स तो जैन धर्म को धर्म ही नहीं मानते. उनका कहना है कि जो धर्म ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता वरन मानवपूजा का हिमायती है, उसे जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं. "एन्साइक्लोपीडिया अमेरिकाना"४ में जैन धर्म को भारत के बहुत से धर्मों में से एक मानते हुए लेखक का मत है कि केवल अहिंसा के कारण ही जैन धर्म का जन्म व विकास हुआ. मुख्य ब्राह्मणों की बलिप्रथा के विरोध में जन्मे इस धर्म ने लोगों को शीघ्र ही आकर्षित किया और इसी का परिणाम है कि भारत में अधिकांश पशुचिकित्सालय जैनधर्मावलम्बियों द्वारा खुलवाए गए हैं. जैन मन्दिरों की प्रशंसा में लेखक ने लिखा है कि वे अत्यन्त सून्दर चित्ताकर्षक, भव्य एवं वास्तुकला की दृष्टि से उच्चकोटि के होते हैं. जैनियों की अपनी स्वतन्त्र वास्तु कला है. "एन्साईक्लोपीडिया ब्रिटानिका"५ में लेखक ने जैनियों को भारत का एक महत्त्वपूर्ण सम्प्रदाय माना है. अपनी संपन्नता के कारण जैन लोग अपनी संख्या की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली हैं. "ब्रिटानिका' के लेखक को यह मानने में कोई आपत्ति नहीं कि जैनधर्म बौद्धधर्म की अपेक्षा कुछ पुराना है. अन्य १. Barton, George A. : The Religions of the world. (Chicago, University of Chicago Press, 1919). 2nd edition. २. Jacobi, H. in “Sacred Books of the East. Vol. xxii ३. Hopkins E. W. Religions of India (Bostan,1895). ४. Encyclopedia Americana. vol Xv, 1958 edition. ५. Encyclopedia Brittanica. vol. XII 1961. edition. MAHABALILAALAALIYA PRIDHIANALANDA AAAAN wwwwwwy wwwwway www Isiolo i oloill 10101010101010 MAITRINITIN ololololololol Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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