Book Title: Kuch Videshi Lekhako ki Drushti me Jain Dharm aur Mahavir Author(s): Mahendra Raja Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 8
________________ ------------ ----- २७८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय लेखकों के समान इस लेख का लेखक भी यह मानता है कि पहले के २२ तीर्थंकर भले ही पौराणिक चरित्र हों, पर पार्श्वनाथ एवं महावीर वास्तविक व्यक्ति थे. पहले २२ तीर्थकर कहाँ तक ऐतिहासिक हैं, यह विवाद का विषय है. श्वेताम्बर-दिगम्बर विवाद पर कुछ विचार करते हुए तथा तत्संबंधी ऐतिहासिक तथ्यों की पुष्टि अपुष्टि पर अपना मत व्यक्त करते हुए लेखक ने जैन साहित्य की अलभ्यता पर खेद प्रकट किया है. लेखक का मत है कि जैन साहित्य प्रचुर मात्रा में अस्तित्व में है, पर उसका अधिकांश अभी तक अप्रकाशित है तथा आलमारियों में बन्द है. इसी कारण जनसाधारण को इस संबंध में अधिक जानकारी नहीं हो सकी. लेखक का मत है कि जैन वास्तुकला, विशेषकर मन्दिरनिमणिकला की अपनी अलग शैली है. इस कला में जैनियों से आगे बढ़ना अन्य किसी के लिए कठिन है. यद्यपि कुछ जैन गुफा मन्दिरों एवं स्तूपों पर बौद्ध-शैली का प्रभाव है पर पत्थरों पर खुदाई की कला को उन्होने चरम सीमा पर पहुँचाया था जिस पर अब तक अन्य कोई नहीं पहुँच सका है. एक छोटे से लेख में यह संभव नहीं कि अंग्रेजी में प्राप्त प्रत्येक ऐसे ग्रन्थ का संदर्भ दिया जा सके जिसमें जैन धर्म या महावीर संबंधी कुछ चर्चा हो. पाठकों की सुविधा के लिए इस लेख के अन्त में कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण प्रकाशनों का विवरण दिया गया है जिनमें जैन धर्म सम्बन्धी चर्चा विस्तार से की गई है. इच्छुक व्यक्तियों को उन्हें देखने का प्रयत्न करना चाहिए. यहाँ उपसंहार के रूप में मैं अमेरिका में प्रकाशित एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण ग्रंथ "दी आर्कियोलाजी आफ वर्ल्ड रिलीजियन्स''' का उल्लेख करने का मोह संवरण नहीं कर पा रहा हूँ. इस पुस्तक में करीब ६० पृष्ठों में जैन धर्म एवं महावीर सम्बन्धी विवरण तथा विषय से सम्बन्धित करीब २० चित्र दिये गए हैं. अभी तक मुझे जैन धर्म सम्बन्धी जितने भी ग्रंथ देखने को मिले हैं, उनमें सबसे अधिक विस्तृत एवं स्पष्ट विवरण इसी ग्रंथ में देखने को मिला है. विद्वान् लेखक ने जैन धर्म सम्बन्धी प्रायः प्रत्येक प्रश्न पर जैन धार्मिक ग्रंथों के आधार पर विचार किया है. जैन धर्म के २४ संस्थापक, विपुल जैन साहित्य, सभी तीर्थंकरों का वर्ण, चिह्न, आयु, ऊंचाई, काल तथा एक दूसरे के बीच की अवधि का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष निकाला है कि एक के बाद दूसरे प्रत्येक तीर्थकर की आयु एवं बीच की अवधि, तथा ऊंचाई में क्रमशः कमी होती गई. प्रारम्भिक कुछ तीर्थंकरों के सम्बन्ध में तो जैन साहित्य में ऐसे कल्पनातीत आंकड़े दिये गए हैं जो स्पष्ट ही अतिशयोक्ति माने जाएंगे. पर लेखक का अनुमान है कि अन्य धर्मों के देवताओं के समान ये भी पौराणिक चरित्र ही हैं. अन्तिम दो तीर्थंकरों के विवरण सहज संभाव्य मानते हुए लेखक का मत है कि केवल पार्श्वनाथ एवं महावीर को ही ऐतिहासिक चरित्र माना जा सकता है. तथा उन्हें ही इस धर्म का संस्थापक माना जाना चाहिए. यद्यपि पार्श्वनाथ के संबन्ध में लेखक का मत है कि अधिकांश बातें बढ़ा-चढ़ाकर कही गई हैं. पर वह यह स्वीकार करता है कि पार्श्वनाथ के जीवन की घटनाएँ तत्कालीन भारतीय सामाजिक स्थिति देखते हुए सत्य हो सकती हैं तथा उनके संबंध में जो कुछ लिखा गया है, अधिकांश ऐतिहासिक माना जा सकता है. इसके बाद पार्श्वनाथ एवं महावीर की जन्मतिथि एवं काल, जैनधर्म के मूल सिद्धांत, जैनधर्म के आधार पर विश्वरचना, कालक्रमानुसार विश्व-विवरण, जीव-अजीव, पुण्य-पाप, आश्रव आदि का विस्तृत परिचय, धर्म का विश्लेषण, भारतीय इतिहास की पृष्ठभूमि में जैनधर्म का विकास-प्रचार, शिशुनाग एवं नन्द काल, मौर्यकाल, कुषाणकाल, गुप्तकाल तथा मध्यकाल में जैनधर्म के इतिहास पर अलग-अलग परिच्छेदों में विचार किया गया है. जैन धर्म का इतिहास तथा उक्त सभी कालों में जैन वास्तु एवं चित्रकला का जितना विशद विवरण इस पुस्तक में दिया १. Finegan Jack : The archeology of world Religions. (Princeton, princeton university press 1952.) O 697 Jain Ed Lation Inter Duration:-DacanaLLLL Mw.jainalibudiy.orgPage Navigation
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