Book Title: Kuch Videshi Lekhako ki Drushti me Jain Dharm aur Mahavir
Author(s): Mahendra Raja
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 1
________________ महेन्द्र राजा एम० ए०, डिप० लिप-एस-सी०, एफ० एल० ए० (लंदन) कुछ विदेशी लेखकों की दृष्टि में जैनधर्म एवं भगवान महावीर लगभग ७ वर्ष तक इंग्लैंड के सार्वजनिक पुस्तकालयों के संपर्क में रहने के बाद मुझे आज यह लिखने में जरा भी संकोच नहीं कि भारत और भारतीयों के विषय में जितनी पुस्तकें अंग्रेजी में प्रकाशित हुई हैं, उतनी हिन्दी तो बहुत दूर, भारत ही नहीं, संसार की भी किसी अन्य भाषा में उपलब्ध नहीं होंगी. इतना होने पर भी अंग्रेजी में प्रतिवर्ष भारत सम्बन्धी २०-२५ पुस्तकें प्रकाशित होती ही रहती हैं. इन पुस्तकों के रचयिता कोई ऐरे-गेरे लोग नहीं होते जो इंग्लैंड या युरोप में रहते हुए भारत के सपने देखते रहते हैं और फिर भारत के संबंध में इधर उधर से कुछ पढ़कर स्वयं के नाम से कोई पुस्तक तैयार कर लेते हैं. इन पुस्तकों के लेखक वस्तुत: वे लोग होते हैं जिन्हें भारतीय परिवारों के संपर्क में आने का भले ही कोई अवसर न मिला हो, पर उन्होंने भारत के बाहरी रूप को अच्छी तरह देखा है. आज अंग्रेजी के उपलब्ध प्रकाशित साहित्य की स्थिति यह है कि आपको प्रायः प्रत्येक विषय की पुस्तक मिल जाएगी. कुछ विषयों के एक-एक अंग पर बड़े-बड़े ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं. किसी भी देश का इतिहास, संस्कृति, धर्म, आचारविचार, आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था आदि के सम्बन्ध में उस देश की किसी भाषा में भले ही कोई पुस्तक न मिले, पर यदि आप अंग्रेजी साहित्य की ओर दृष्टि करें तो आपको शायद ही निराश होना पड़े. सूचीकार एवं वर्गीकार (Cataloguer and classifier) के रूप में कार्य करते हुए प्रतिवर्ष लगभग दस हजार से ज्यादा पुस्तकें मेरे हाथ से गुजरती हैं. इन पुस्तकों में मैंने उपन्यास एवं कथासाहित्य की पुस्तकें सम्मिलित नहीं की हैं. इतनी अधिक पुस्तकें पढ़ने का अवसर भले ही न मिला हो पर इन पुस्तकों की विषयवस्तु, उनके लेखक का परिचय, उनकी उपादेयता, विषय-विश्लेषण आदि को समझने का अवसर अवश्य मिला है. इसके अतिरिक्त कभी-कभी पुस्तक के किसी अध्याय में अकस्मात् भारत सम्बन्धी कोई बात नजर आ गई तो फिर उत्सुकतावश उसे पढ़ने का मोह भी संवरण नहीं कर पाया हूँ. इस प्रकार अपने कार्य के दौरान में मेरे हाथों से ऐसी अनेक पुस्तकें गुजरी हैं जिनमें यथावसर भगवान् महावीर एवं जैन धर्म सम्बन्धी चर्चा भी आई है. इन पुस्तकों के जैनधर्म सम्बन्धी अध्यायों या पेरेग्राफों को मैंने रुचिपूर्वक पढ़ा है. उन्हें पढ़ कर कई बार मेरे मन में यह इच्छा हुई कि मैं "विदेशी लेखकों की दृष्टि में जैनधर्म एवं महावीर" शीर्षक एक लेख लिख डालू, पर आलस्यवश ऐसा नहीं कर सका. पिछले वर्ष जब श्री हजारीमल स्मृति-ग्रंथ के लिए किसी लेख की मांग की गई तो अकस्मात् ही मुझे उक्त विषय स्मरण हो आया और मैं इस लेख की तैयारी करने लगा. अभी तक मुझे जितनी भी पुस्तकों में जैन धर्म सम्बन्धी उल्लेख देखने को मिले हैं, उन सभी के लेखक इस मत से सहमत हैं कि जैनधर्म बौद्धधर्म से पुराना है पर इन दोनों ही धर्मों का विकास एवं उत्थान छठी शताब्दी में विशेष रूप से हुआ. प्रायः सभी लेखक इस मत के भी हैं कि ये दोनों धर्म ब्राह्मणत्व के विरोध में उठे और अपने उद्देश्य में बहुत कुछ सफल भी हुए. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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