Book Title: Kuch Videshi Lekhako ki Drushti me Jain Dharm aur Mahavir Author(s): Mahendra Raja Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 5
________________ महेन्द्र राजा : विदेशी लेखकों की दृष्टि में जैनधर्म और महावीर : २७५ 6-0-0--0-0--0-0-0-0---- दिया गया था कि उन विधि-विधानों की क्रिया ब्राह्मणों के अतिरिक्त और कोई नहीं जानता था. ब्राह्मणों के अभाव में किया गया कोई भी कार्य व्यर्थ और महत्त्वहीन समझा जाता था.. ब्राह्मणों की ही इच्छानुसार देश में स्थान-स्थान पर कुछ ऐसे स्थल नियुक्त कर दिये गए थे जहां बड़े समारोह के साथ पशुबलि दी जाती थी. ब्राह्मणों ने जनसाधारण के मन में ऐसी धारणा उत्पन्न कर दी थी कि भगवान् बलि से प्रसन्न होते हैं. उनका ऐसा कहना सच हो या नहीं, पर यह निर्विवाद है कि धर्म की आड़ लेकर उस समय ब्राह्मण लोग अनेक प्रकार से अपना स्वार्थ साधन करते थे. ब्राह्मणों का इस प्रकार का बाह्य आडम्बर और भ्रष्टाचार देखते-देखते जब लोग तंग हो गए, लगातार बलि के दृश्य देखते-देखते जब लोगों के मन में भी कुछ समझ आई तो यह स्वाभाविक था कि उनके हृदय में ब्राह्मणों के एकाधिकार के विरुद्ध भावना जागृत हो. पर इतना ही पर्याप्त नहीं था. ईसापूर्व छठी और ५वीं सदी में लोगों के मन में धर्म और दर्शन के प्रति आस्था बढ़ रही थी और लोग स्वयं इन बातों में रुचि लेने लगे थे. 'ब्राह्मणवाक्य प्रमाणम्' मानने के लिए अब वे तैयार नहीं थे. अब वे प्रत्येक बात के विषय में क्यों और कैसे ?' कहां ब क्या ? आदि प्रश्न पूछने लगे थे. जब ब्राह्मण लोग उनकी इस जिज्ञासा का समाधान नहीं कर सके तो उनके मन में ब्राह्मणों के प्रति अविश्वास और अश्रद्धा हो उठी. ऐसे ही समय महावीर का अवतरण हुआ. 'महावीर' शब्द का अर्थ है 'ग्रेट हीरो' (Great hero) यह उपाधि उन्हें उनके अनुयायियों द्वारा दी गई है. उनका असली नाम वर्द्धमान था तथा उनका जन्म गणतन्त्र की राजधानी वैशाली के लिच्छवि वंश में हुआ था. कुछ लोगों का यह भी मत है कि वे वैशाली-नरेश के नाती थे तथा कुछ लोग राजा बिम्बसार से भी उनका संबंध जोड़ते हैं. महावीर का जन्म कब हुआ, इस सम्बन्ध में लोगों में मतभेद है पर आधुनिक अनुसंधान के आधार पर उनका जन्म ई० पू० ५४० में हुआ माना जाता है. क्षत्रियवंश में जन्म लेने के कारण उनकी शिक्षा-दीक्षा भी तत्कालीन रीति-रिवाजों के अनुसार हुई. शिक्षासमाप्ति के बाद युवावस्था में उनका विवाह हुआ और उनको एक पुत्री भी हुई. लेकिन महावीर एक महान् विचारक थे. घर-गृहस्थी में उनका मन अधिक समय तक नहीं रह सका. तीस वर्ष की अवस्था में वे अपनी पत्नी, पुत्री तथा घर-बार छोड़कर कुछ ऐसे साधुओं के साथ चले गए जो पार्श्वनाथ के उपासक माने जाते थे.' पार्श्वनाथ लगभग २५० वर्ष पूर्व हुए थे तथा वे जैनों के महापुरुषों की श्रेणी में २३३ माने जाते हैं. कहा जाता है कि उनके पूर्व २२ अन्य महापुरुष हो चुके थे. लगभग १२ वर्ष तक महावीर सारे देश में इधर-उधर घूमते रहे. अपनी दैनिक जीवन की आवश्यकताएं उन्होंने बहुत कम कर दी तथा वे तपस्या में अधिक समय बिताने लगे. कभी-कभी वे ध्यानावस्था में कई दिनों तक भूखे-प्यासे रह जाते थे. पहले तो वे कुछ वस्त्र पहने रहे पर कुछ समय बाद उन्होंने सभी प्रकार के परिग्रह का त्याग कर दिया. उन्होंने वस्त्रों को भी अनावश्यक कहकर त्याग दिया. कहा जाता है कि इसके बाद वे मृत्यु पर्यन्त निर्वस्त्र रहे. इस प्रकार रहते-रहते वे १३वें वर्ष में जिन हो गए. 'जिन' का अर्थ है 'विजेता'. यह एक प्रकार से ठीक ही है, क्योंकि इस अवधि में उन्होंने प्रत्येक विषय का ज्ञान प्राप्त कर लिया था और सभी प्रकार की मानवीय भावनाओं, आकांक्षाओं पर विजय प्राप्त कर ली थी. इसी 'जिन' शब्द से ही जैन शब्द बना जो आज उनके अनुयायियों के लिए प्रयोग किया जाता है. महावीर यद्यपि जैन धर्म के संस्थापक नहीं थे, पर अन्य किसी व्यक्ति की अपेक्षा उन्होंने ही इसके प्रसार-प्रचार में सर्वाधिक योगदान दिया. उन्हें 'तीर्थंकर' भी कहा जाता है. उनके पहले २३ तीर्थंकर हो चुके थे, अतः उन्हें २४वां १. महावीर ने कुछ साधुओं के साथ नहीं, एकाकी ही अभिनिष्कमण किया था और दीर्घ काल तक वे एकाकी ही साधनानिरत रहे थे, यह तथ्य इतिहास से प्रमाणित है किन्तु यहाँ श्रीपाइक के विचार दिये जा रहे हैं.-सम्पादक RAND Jain Education Interational For Private & Personal Use Only: www.janelibrary.orgPage Navigation
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