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प्रकार वाचकोंके ज्ञानकी वृद्धि के साथ साथ उक्त प्रश्नका उत्तर तथा मेरे नवीन प्रयासके विचारका कारण भी हस्तगत हो जायगा ऐसा मेरा विश्वास है । कहा भी है-'हाथ . कंगनको आरसी क्या ?' । अस्तु ।
अपने विचारको इस प्रकार मूर्तस्वरूप प्राप्त होते देखकर मुझे कृतकृत्यताका अनुभव होना सकारण ही नहीं उचित भी है।
इस पुस्तक के सम्पादन कार्यमें मुनि श्रीसूर्योदयविजयजी महाराजने प्रूफ संशोधन आदिमें तत्परतापूर्वक जो सहायता की है, इस कारणसे यहां मेरे लिये उनका स्मरण करनेके साथ साथ आभार मानना भी उचित ही है । - मुझे आशा तथा विश्वास है कि वाचक वर्ग इस पुस्तकका उपयोग कर लाभान्वित होंगे ।
वाचकवर्गहितेच्छु:मुनि मुनिचन्द्रविजय ।
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