Book Title: Ketlik Laghu Rachanao
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 5
________________ मई २०११ ७५ सुरवधूनरवधू कोडि, मिलि मिलि सरिखी जोडि, ग०, गावै जिनशासन-धणी जी ॥९॥ इति सौधर्मगणधर भास ॥ राजग्रही रलीयांमणी जिहां गुणशिल चैत्य सुठांम, साजन मोरी हे सहीयर मोरी हे बेंहिंनर(नी) मोरी हे, आवो सवाईगुरु भेटवा, कांई मेटवा कर्म कठोर सा० मुनिगण तारामां चंद यूं आव्या गणधर गौतमस्वामि सा० १ पांचे इंद्री वसि करें वली पालें पंच आचार सा० लबधि अठावीसनो धणी जेहवो आठ प्रभावक राय सा० २ पहेरणि पीत पटोलडी उपरि नवरंग घाट सा० कुंकुमघोलसु साथीओ करि अक्षतपूरि सुघाट सा० ३ लली लली कीजें लुंछणां लेई रजत कनकनां फूल सा० करो जिनशासन प्रभावना वजडावो मंगलतूर सा० ४ इती गौतमभास ॥ कठिन शब्दार्थ रचना रचना १ कडी ४ न्याणे 3 न्याणे दीखइ केवल नीयलबधी गेलिं 3 w w" ज्ञाने दीक्षा आपे केवलज्ञान पोतानी लब्धि-शक्तिथी गेलथी-आनन्दथी सधवा-सौभाग्यवती सोहव नोंध : बाकी अनेक शब्दो जैन परिभाषाना छे, तेना अर्थ जे ते सन्दर्भ थकी ज पामी शकाशे.

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