Book Title: Ketlik Laghu Rachanao Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ ७४ अनुसन्धान-५५ नवविध धर्मतत्त्वनी देशना गु०, नवकल्प उग्रविहार स० । नवनीयाणां परिहरे गु०, नववा. व्रत धार स० ॥५॥ आतमबाजोठ उपरे गु०, समकित साथीओ पूर स० । मूलउत्तर[गुण] धूयली गु०, उपसम अक्षत भूरि स० ॥६॥ कोकिल कंठे कामिनी गु०, सोहव गाये गीत स० । माणिक मोती लूंछणे गु०, श्रीजिनशासन रीति स० ॥७॥ इती षट्विंशकाचतुष्कगर्भित गूंहली गीतं ॥ आ छे लाल - ए देशी ॥ ज्ञानादिक गुणखांणि राजग्रही उद्यान गणधर लाल सोहमसामी समोसर्या जी ॥१॥ कंचन गौरी सरीर वाणी गंगानीर, गण० । त्रिहुं पंथें पसरें सदा जी ॥२॥ अंग उपांगह बार१२, दसविध रुचीनो धार, ग० दुगविध२६ शिक्षा उपदिशे जी ॥३॥ तेर क्रिया१३ व्रत बार१२, गिहिपडिमा अगीयार१, ग०, श्रावकगुण११ भेद सिद्धना जी ॥४॥ विनय१० वेयावच० कल्प१०, धरें दसविध छ अकल्प, ग० वंदण दोष२२ विकथा तजें जी३६ ॥५॥ कुंकमरोल कचोल, घुयली रंगमरोल, ग०, ____ अक्षत भूरि श्रीफल ऊपरें जी ॥६॥ मगधाधिपनी नारि, सोल सजी सणगार, ग०, लली [लली] करती लूंछणां जी ॥७॥ जोती गुरुमुखचंद, पामती परमानंद, ग०, चतुर चकोरी गोरडी जी ॥८॥Page Navigation
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