Book Title: Ketlak Madhyakalin Shabdo Author(s): Jayant Kothari Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ संपादके अनिवड शब्द शब्दकोशमां नोध्यो छे, पण एनो अर्थ आप्यो नथी. 'जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि'मां निवड शब्द पण वपरायो छ : (१) वात कहइ जे पापनी, तिण साथइ हो करुं निवड सनेह (२) बगसि गुनह ए बापजी, हिव मो सुं हो धरि निवड सनेह. (३) जेह सुं निवड सनेह ते तउ वीसार्या नवि वीसरइ. एम लागे छे के निवडना प्रयोगो ज चावीरूप बने तेवा छे. बधे निवड 'स्नेह'नुं विशेषण छ. त्रीजु द्दष्टांत गाढ, ऊंडो' एवो अर्थ स्पष्ट रीते आपे छे, “जेना प्रत्ये गाढ/ऊंडो स्नेह होय ते विसार्या वीसरता नथी." बहेला बे दृष्टांतोमां पण ए अर्थ निर्विघ्ने लई शकाय छे. ए बन्ने पंक्तिओ प्रभुप्रार्थनाना पदमांथी छे. पहली पंक्तिमा पोते पाप साथे ऊंडो स्नेह को हतो तेनो उल्लेख छे, बीजी पंक्तिमां तीर्थंकरदेवनो ऊंडो स्नेह प्राो छे. निवड शब्द निकटमाथी आव्यो होवानो तर्क थई शके. प्राकृत कोश णिअड (निकट) शब्द पासे, पासेन' एवा अर्थमां नोंधे छे. जो आ बराबर होय तो निवड एटले 'निकटनो, आलीय, गाढ' एवो अर्थ लेवानुं खोटुं न कहेवाय. अने अनिवडनो 'दूरनु, अनात्पीय' एवो अर्थ थाय, ए नोंधपात्र छे के निवडनी पेठे अनिवड स्नेहना विशेषण तरीके क्यांय वपरायेलो नथी. ए एकलो ज वपरायो छे. एथी एमां 'अनात्मीय' उपरांत 'पराया' 'निःस्नेही' एवा अर्धने प्रण अवकाश जणाय छे. जेमके, (१) जे सगा छे तेमने अनात्मीय पराया थतां वार लागती नथी. (३) पलकमां अनात्मीय परायो निःस्नेही थई गयो छे ते माटे तने शाबाशी घटे छे. .(माता दीक्षा लेवा तैयार थवेल पुत्र प्रत्येर्नु आ व्यंगवचन छे.) (४) जुदा थवाने प्रसंगे रस्ते मळी गयेला लोको पण विदाय मागे छ।रजा मागे छे तो अगारी केम विदाय रजा न मागी अने आम पराया निःस्नेहीनी जेम विचार कर्यो ? बीजा उदाहरणनां अन्धयो बराबर स्पष्ट थता नथी, पण एमां अनिवडनो आवो ज अर्थ लेवानो रहे. अनुभाव 'गुर्जररासावली' (संपा. ब. क. ठाकोर वगेरे)मां अनुभाव शब्द आ प्रमाणे वपरायो है : वाजइ तूर अनाहत, नाह तणइ अनुभावि, आणइ एक अनेकप, एक पलाणई वाहु. संपाद कोए अनुभाविनो 'by the dignity. by the authority' (गौरवथी, अधिकारथी [343 Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.orgPage Navigation
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