Book Title: Kavyanushasanam
Author(s): Hasu Yagnik
Publisher: ZZ_Anusandhan
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डिसेम्बर २०१०
प्रकार निदर्शन- शृङ्खला - संयोजननो छे. जे कंइ कहेवाय, स्थपाय के रदियो अपाय, तेने निदर्शन द्वारा पुष्ट करवुं पडे.
आना दृष्टान्तरूपे अर्धप्राकृतमां लखायेली चेटक दर्शावी छे. ओ कथा प्रकाशमां नथी, परन्तु जैन अने जैनेतर बन्ने स्रोतमां 'प्रारब्ध वधे के पुरुषार्थ' नी कथा मळे छे. विशेष लाक्षणिक उदाहरण शामळनी 'उद्यमकर्मसंवाद' छे. ओमां ओक पात्र कहे छे प्रारब्ध ज मुख्य छे, प्रतिपक्ष कहे छे पुरुषार्थ. अ बन्ने प्रारब्ध अने पुरुषार्थने पुष्ट करतां दृष्टान्तो आपे छे. आम, केवळ वाद, वात, मान्यतानी अभिव्यक्ति नहीं, परन्तु तेने पुष्ट करती दृष्टान्तकथा ने अनी शृङ्खला अहीं रचाय छे. 'चित्रकारदुहिता' मां के वेताळ-पचीशी' मां जे प्रश्नगर्भकथाओ ओक भूमिकाकथाने आधारे संकळाती जाय ने कथानक विकसतुं जाय, ओवी भात - पेटर्न - छे. अहीं दलील छे, अने पुष्ट करतां नानां नानां कथानको वार्तानुं कथानक घडे छे. आम आ प्रकार प्रवलिकानो पेटा संलग्न अकम निदर्शन - कथानो छे.
'मन्थल्लिका' कथा प्रकार हास्य- मजाकनो छे. ओमां उपहास पाछळ तिरस्कार, ऊतारी पाडवानी भावना पण होय; तो क्वचित अमुक जाति-वर्गनी खासियतने निमित्त बनावीने हसाववानो पण होय. आवी कथामां पुरोहित, अमात्य, तापस वगेरे स्थानथी उच्च वर्गनां गणातां पात्रोनो उपहास करवानो होय. प्रेतमहाराष्ट्र भाषामां ओटले के पैशाचीमां लखायेली क्षुद्रकथा, गोरोचना, अनङ्गवती वगेरेने दृष्टान्तरूपे हेमचन्द्राचार्य दर्शावे छे. तेमां प्रथम बे प्रकाशमां आवी जणाती नथी. भरटकबत्रीशी अने विनोदकथानां कथानकोने आ प्रकारमा मूकी शकाय. वैदिक, बौद्ध अने जैन से त्रणे भारतीय आर्यधर्मनी जुदी पडती शाखाओनां साहित्यमां सामा पक्षने उद्देशीने आवी कथाओ कहेवाती थयेली.
'मणिकुल्या' नुं लक्षण हस्तामलकवत् करतुं हेमचन्द्रीय सूत्र छे : 'यस्यां पूर्ववस्तु न लक्ष्यते पश्चात् तु प्रकाश्यते' ओटले के ओमां पूर्वे जे घटना घटी गइ होय तेनुं कोई ज वीगत साथे वर्णन - निरूपण थतुं नथी, परन्तु ते पछी कोई चतुराईथी अनुमान - सम्भावनादिना आधारे अ घटना केवी रीते घटी हशे, तेना पर प्रकाश पाडे छे. हेमचन्द्राचार्य ओना दृष्टान्त तरीके 'मत्स्यहसिता' दर्शावे छे. सम्भवतः माछलीना हास्य पाछळना रहस्य विशेनी

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