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अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
कथानो अहीं निर्देश थयो जणाय छे. भाणामां पिरसायेली मृत माछलानी वानगीनो राणीले ‘परपुरुषनो तो हुं स्पर्श पण करती नथी' अवां कारणे अस्वीकार करतां मरेली माछली हसी पडी ! राजाने थयुं माछली कंइ हसे? ते पण मरेली ? आनुं कारण शुं? आम अहीं मात्र परिणाम छे, तेवू बनवानुं कारण नथी. अना पर प्रकाश मन्त्री पाडे छे. राजाओ आग्रहपूर्वक मन्त्रीने हास्य- कारण पूछतां अन्ते मन्त्रीने कहेवू पड्युं के जे राणी परपुरुषोने भोगववा स्त्रीना वेशमां पोताना यारने रणवासमां सतत साथे राखे छे, ते मरेला माछलाने पण स्पर्श नथी करती अq कहे छे तेथी मरेलो माछलो हस्यो ! आ कथा 'कथासरित्सागर' तथा अन्यत्र जाणीती छे.
'मणिकुल्या'नो अर्थ छे कुलडीमां छुपावेलो मणि. साचा मणिने माटीना पात्रमा गमे तेटलो ढांकीढूंबीछुपावीने राखो तो पण सामान्य अवां छिद्र के सूक्ष्म ओवी तिराडमांथी पण रत्ननुं किरण बहार तो आवे ज अने अने आधारे चतुर व्यक्ति कुलडीमां मणि छुपाव्यो छे, ते जाणी ज जाय. अर्थात् कोई पण व्यक्ति गमे तेटलो छानोछूपो गुनो करे, परन्तु ओ गुनानुं परिणाम जोइने, सूक्ष्म निरीक्षण अने तर्कने आधारे चतुर व्यक्ति अ घटना केवी रीते बनी हशे, ते उकेली शके. आधुनिक डिटेक्टीव कथा अनुं उदाहरण छे. चोरी के खून थयां होय त्यारे ओ कोणे कर्यु, क्यारे कर्यु, ओ 'पूर्ववस्तु न लक्ष्यते' परन्तु चतुर डिटेक्टीव जे कंइ बन्युं छे तेनुं निरीक्षण करीने ते कार्य कोणे कर्यु, केवी रीते कर्यु, ते पकडी पाडे - 'पश्चात् तु प्रकाश्यते'. आवी कथानुं उत्तम दृष्टान्त 'वसुदेव-हिण्डी'मां आवती चारुदत्तनी कथामां छे. नदीकिनारे फरवा गयेला चारुदत्त अने तेनां मित्रो भीनी रेतीमां पडेलां मोटां पगलां जुओ छे, ने थोडे जतां पदचिह्न जणातां नथी. परन्तु आगळ जतां कोइ वृक्ष नीचे ए ज पगलां जुओ छे, वृक्षनी सपुष्प डाळ तूटेली छे, अक नानी अने बीजी मोटी ओम बे व्यक्ति छे ते स्पष्ट थाय छे. आम पूर्वे जे कंइ बनी गयुं छे ते जाणमां नथी. परन्तु पदचिह्नो अने बीजां निरीक्षणोने आधारे कोई आकाशचारी नदीमा स्नान करती सुन्दरीने पोताना खभा पर बेसाडी लई गयो छे, ते जाणमां आवे छे.
धर्म, अर्थ, काम के मोक्ष जेवा पुरुषार्थने सिद्ध करवा माटे वैचित्र्ययुक्त