Book Title: Kavyanushasanam
Author(s): Hasu Yagnik
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ मध्यकालीन गुजराती कथासाहित्याभ्यास-सन्दर्भ हेमचन्दाचार्य-कृत 'काव्यानुशासनम्' हसु याज्ञिक मध्यकालीन गुजराती साहित्यना कोई पण कथाश्रयी प्रकार ने तेनां स्वरूपोना उद्भव-विकासने, विशेषतः तो दशमी सदीना अना प्रवर्तनने वस्तुलक्षी दृष्टिले जाणवानो अकमात्र दृष्टिपूर्ण लिखित दस्तावेजीरूप मूळ सन्दर्भग्रन्थ हेमचन्द्राचार्यकृत 'काव्यानुशासनम्' छे. संस्कृत मीमांसानो आ ग्रन्थ छे, ओम धारीने मध्यकालीन गुजरातीना लिखित प्रवाहनां रास, आख्यान, पद्यवार्ता, फागु, बारमासी, प्रबन्ध-पवाडा तथा कण्ठप्रवाहनां लोक-महाकाव्य, अर्धसाहित्यिक महाकाव्य - SemiLiteratury Epicना मूळ, विकास, महत्त्वनां लक्षणो वगेरेनो अभ्यास करवामां, प्रस्तुत सन्दर्भग्रन्थनी आंख उघाडनारां तथ्यो प्रगट करती बाबतो तरफ मध्यकालीन गुजराती साहित्यना अभ्यासीओ- बहु ज ओछु ध्यान गयु. अनुं परिणाम ओ आव्यु के आख्यानने छेक चौदमा-पंदरमा शतकमां जन्मेलुं गुजराती- ज आगq नवं स्वरूप मानवामां आव्युं, अने आख्याननो पिता भालण छे, एवं ज स्थापीने चालवामां आव्यु. ख्यात ओवी पौराणिक कथाने देशी गेय ढाळमां रजू करवानी पद्धति तो बार-तेर सदीना रासमां सुनिश्चित थई गई हती अने कडवकनुं माळ पण प्रचारमा आवी गयुं हतुं तथा प्रबन्धमध्ये परबोधनार्थ आवती नलादिनी कथाने ओक कृतिना रूपमां बांधीने गान, पठन अने स्वल्प अभिनयना आधारे अेक ग्रन्थिक द्वारा सर्जाती-रजू थती कृति ते 'आख्यान' ओम अपभ्रंशकाळे ज संसिद्ध थई चूक्यु हतुं. आख्यानना स्वरूप-घडतरना विकासमां भालण- अर्पण अमूल्य छे, ओ विशे कोई प्रश्न नथी ज, परन्तु 'आख्यान' अपभ्रंशनो ज सीधो वारसो धरावतुं स्वरूप, ते आ काळे ज जन्म्युं ने संसिद्ध थयु, ओम धारी लईने चालवू, ते तथ्य- अज्ञान गणाय. मध्यकाळनां रास, फागु, 'प्रबन्ध' जातिप्रकार Literary Gnre ऐतिहासिक घटनामूलक घटकअंगो, अन्तरअङ्ग विषयवस्तु-बहिअङ्ग निरूपण-माळखुं के अनु निर्वहण, अनी रजूआतनुं स्वरूप, हस्तप्रतरूपे मळतो Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २०१० १०९ मूळ आधाररूप कृतिपाठ अने तेनी रजूआत - Performance माटेना पाठ (text) वच्चेनो केटलोक भेद : आ सन्दर्भे हजु आजे पण अभ्यासीओमां ज कोइ स्पष्टता नथी. कण्ठप्रवाहनां लोकमहाकाव्योनी सुदीर्घ परम्परा अपभ्रंशोत्तरकाळनी मध्य, उत्तर, पश्चिमक्षेत्रनी विविध नवी नवी जन्मेली आर्यभाषाओमां हती, जे 'आल्हा', 'ढोलागान', 'बगडावत-कथा' (अनुं भीलीरूप गुजरांनो अरेलो), 'पाबूजीकथा' (अनुं भीलरूप राठोरवारता), रामकथाकृष्णकथा-पाण्डवकथा-नाथकथा वगेरेना अनेक स्थानिक जाति-बोलीगत रूपान्तरो दशमी सदीथी चौदमी सदी सुधीना ४०० वर्षना सुदीर्घ गाळामां प्रवर्तता हता ने जेनां नहोतां तो लिखित प्रवाहमां कृतिरूप बंधायां के नहोतां तो लिखित प्रवाहमां महाकाव्य दाखल कोइ वृत्तिनी रचनानां उद्यम-साहस ! आथी, नवी जन्मेली आर्य भाषाओ New Indo-Aryan Languages मां लोककाव्य हतां ज नहीं, आQ ज धारी-मानी-स्वीकारी लेवामां आव्युं. आनुं मूळ कारण ओ के, आ बधुं ज स्पष्ट रूपमां जाणवानी लिखित दस्तावेजी सामग्रीने, ओ संस्कृतमां ज मीमांसानां रूपमां लखायेली होवाने कारणे, ओ बधी ज परम्पराओ संस्कृत भाषानी मानी लेवामां आवी. संस्कृतना अभ्यासीओए जे अभ्यास कर्या ते सहज छे के संस्कृतनी ज परम्पराने जाणता होय, मध्यकालीन लिखित परम्परा के लोकसाहित्य तरीके वर्गीकृत थई गयेली कण्ठपरम्पराने जाणता न होय. मल्टी डायमेन्शनल, मल्टी डिसिप्लिनरी अप्रोच ने कम्पेरेटिव स्टडीनुं महत्त्व प्रमाण्या पछी पण, आपणा अभ्यासमां केन्द्रमां तो मात्र सम्बन्धित लिखित ने प्रशिष्ट मनातुं साहित्य ज रह्यु ! ओ पण एकांगी'साहित्य' अटले शब्दाश्रयी कला. ओ कलाने आपणा पूर्वना मीमांसकोओ क्यारेय आवी मर्यादित मानी नथी, अना दृश्य-श्रव्यरूपने, रजुआतना माध्यमने पण दृष्टिमा राख्यां छे अने 'साहित्य' कलाना शब्दाश्रयना अंगने मूळ ने मुख्य मानवा छतां, अनी कृतिनी रजुआतमां संगीत, नाटक, नृत्यनो संयोजित विनियोग थाय छे, ते दृष्टिमा राखे छे. 'संगीत' पर्याय ज 'म्युझिक' (to muse, आनन्द आपवो) नी अपेक्षाओ विशेष सूक्ष्म ने सूचक छे. न केवळ स्वर, न अना संयोजन- स्वरूप, परंतु 'नृत्येन, गीतेन, वाद्येन सहितम्' ओ आ पर्यायने बांधे छे. नाटकमां, रसतत्त्व, अनुं मनोवैज्ञानिक पासुं, 'औचित्य' अना व्यवहार सामग्रीना विनियोग, उपयुक्तताने, 'गुण' अना समग्र समन्वित Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ कलाना रूपने, 'दोष' अनां भयस्थानने-क्यां जवं, क्यां न जवं, thus far and no further ना सीमाडाने. Line of demarkation –चोक्कस रीते ने रूपे बांधे छे. कलास्वरूपनी समग्रता – totality, बहुआयामी – Multidimentional - स्वरूपने दृष्टिमां राखीने चाले छे. आम, पूर्वनी कलामीमांसा विकसित ने पूर्ण रही छे. भरतादि पछी समयान्तरे विविध ग्रन्थो रचाया अमां सर्जनमूळ, कृतिनां घटकअंगो अने भावन-मूल्यांकननी प्रक्रिया, अनुं स्पष्ट रूप प्राचीन ग्रीक अने भारतीय आर्य परम्परामां बंधायां. विविध काळना ग्रन्थोमां कलानो, अनी विकसती विभावनाना बन्धाता-विकसता जता रूपमा आलेख मूर्त थयो छे. ज्यां केटलुक नवं के विशेषित आव्युं ओने आपणे नवोन्मेष के दृष्टिपूर्ण अभिनव सिद्धान्त प्रस्तुतीकरण-स्थापन तरीके स्वीकार्यु अने जे मीमांसकोओ सूत्रात्मक रूपमां पूर्व संचित सिद्धान्तनुं निरूपण कर्यु तेमनो 'समन्वय-कार'मा समावेश को. आ दृष्टिले मम्मट अने हेमचन्द्रने समन्वयकार तरीके विशेषतः ओळख्याओळखाव्या. पूर्वसंचितनुं नवनीत सूत्रबद्ध करवू, ओ समन्वयकार- मुख्य कार्य मनातुं आव्युं छे, त्यारे विशेष ध्यान से बाबत पर खेंचावं जोईओ, के आ वर्गना मीमांसको अने तेमना ग्रन्थो मात्र सारसंक्षेप के दोहन नथी ज. अमां एमनी पोतीकी दृष्टि, सूझ ने केटलीक आगळ जोवा न मळती होय तेवी स्थापना पण होय छे. कथानुं दृष्टान्त आपीने स्पष्टता करीओ तो 'हंसावती'नी कथाना असाइतथी आरम्भीने ते शिवदास सुधी ने तेथी पण आगळ जे कथाकृतिओ रचाइ, हंस-वत्स पर जैन स्रोतमां अनेक रासरूप रचनाओ थइ के पछी माधवानल, मारुढोला, सदेवंत-सावलिंगा, नळकथा, सगाळशाकथा ने बीजी ओवी अनेक कथाओ पर समय-समये जे अनेक कृतिओ रचाई तेमां अनेकनी ओक कथा, अना ओ ज स्वरूपमां नथी आवी. भाषा अने सामाजिक परिस्थितिमा जे परिवर्तनो आव्यां, अटलां ज नवी कृतिमां छे अq नथी. आ उपरान्त पण ओ कथाओ पाछळ रहेला रचनाहेतु, समकालीन कण्ठपरम्परानां उमेरण-संवर्धन-रूपान्तर अने खास तो अना निरूपकनुं दृष्टिबिन्दु, प्रचलित ओवी कथामांथी पण नवी ज ओवी कृतिरूप रचना करे छे. अने कर्तानी सर्जकता, कल्पकता, दृष्टिबिन्दु - point of view ने केटलुक नवं ज अर्थदर्शन Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २०१० जूनी कृतिने नवुं ज सर्जक रूप आपे छे. प्रत्येक रचना आ दृष्टिले मात्र Old wine in new bottle नथी, 'वाइन' ने 'विन्टाझ' (आथो) पण जुदां होय छे. आवुं ज मीमांसानां सूत्रात्मक अने समन्वित मनातां रूपमां छे. बधुं साररूपे सूत्रबद्ध करवामां मम्मटाचार्यनी पोतानी आगवी दृष्टि छे, हेमचन्द्राचार्यनी पण ओम आगवी दृष्टि छे. समन्वयकार मात्र सारदोहन, संक्षेप आपतो नथी; पोतानां ज्ञानपरिशीलन, स्वाध्याये अने जे केटलुंक नवं लाध्युं छे, ते ओना केन्द्रमां छे. हेतु मात्र जे चर्वित छे तेने सूत्रबद्ध करवानो ज नथी, जे केटलुंक स्वीकार्य छे, जे केटलुंक अस्वीकार्य छे ने केटलुंक अकदम नवुं ने जूदुं छे, ते ना केन्द्रमां छे. दृष्टान्तथी कहीओ तो काव्य - प्रयोजनमां मम्मटने यशसे, अर्थकृते, व्यवहारविदे, शिवेतरक्षये दृष्टिमां आवे छे, 'आनन्द' उपरान्त, ज्या हेमचन्द्राचार्यने ‘अर्थकृते, व्यवहारविदे, शिवेतरक्षये' स्वीकार्य नथी. ओमना मते काव्यनां आनन्द, यश अने प्रीतिपूर्ण उपदेश मुख्य छे. आ तो स्पष्टता माटेनुं अकमात्र दृष्टान्त छे. आ रीते ज रस, भाव, दोष, गुण, अलङ्कारमां पण मीमांसक तरीकेनी अक पोतीकी मुद्रा छे. अने विशेष छे ते जे जे साहित्यप्रकारो, जातिओ, स्वरूपो वगेरेमां भरत, कुन्तक, अभिनवगुप्त, आनन्दवर्धन, मम्मट, महिम भट्ट, धनञ्जय द्वारा जे कंइ कहेवायुं - चर्चायुं अनुं पश्चिम भारतना - गुर्जर क्षेत्रमां दशमी सदीमां जे रजूआतमां प्रतीत थतुं विशेष रूप छे, तेनुं ज केटलुंक नवुं जे अन्यनी मीमांसामां नथी ते छे. ओ तो जाणीतुं ज छे के माळवाना गुजरात माटेना हीनभाव - वचनमांथी जन्मेलो 'तोलाङ्गुलो, वधूमुखविक्षमाणो, भ्रष्टमुखो' होवानो गुजरात - गुजरातीता पर तिरस्कारनो भाव छे तेनो ज जवाब हेमचन्द्राचार्यनी अनुशासन - त्रयी छे. आम छतां केवळ विद्याने ज वरेला आ शीलवान मीमांसके भोज वगेरेनो छोछ नथी राख्यो. ओमनां पण उद्धरणो अमणे चर्चां छे. मारु १११ 'काव्यानुशासनम्' अने स्वोपज्ञटीका 'विवेक' हेमचन्द्राचार्यना मुख्य मीमांसाग्रन्थो छे. ‘काव्यानुशासनम् 'ना कुल ८ अध्यायमां, २०८ सूत्रोमां १. काव्यलक्षण, २. रस, ३. दोष, ४. गुण, ५. अलङ्कार (शब्द), ६. अर्थालङ्कार, ७. नाट्य अने ८. प्रबन्धात्मक काव्यभेदनी स्थापना - चर्चा तेओओ करी. अ पछी विशेष चर्चा १. अलङ्कारचूडामणि अने २. काव्यानुशासन परनी 'विवेक' नामनी टीकामां करी. अहीं कथासन्दर्भे, खास करीने मध्यकालीन लिखित Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ परम्परानी गुजराती कथाओ अने कण्ठपरम्परानी लोककथाना अभ्यासनी दृष्टिले महत्त्वनो अध्याय - ८ छे, तेथी, तेनी विगत क्या-केटलो-केवो प्रकाश पाडे छे ते उत्तरार्धमां जोइओ. विशेष सूझ ने दृष्टिपूर्ण, केटलीक दृष्टिले तो अभूतपूर्व अq 'प्रबन्ध-काव्य'नुं वर्गीकरण छे. अने आलेखना रूपमां आरम्भे जोइओ : प्रबन्धात्मक काव्य (१) प्रेक्ष्य (२) श्राव्य गेय पाठ्य महाकाव्य आख्यायिका कथा चम्पू डोम्बिक नाटक वगेरे १. उपाख्यान भाण २. आख्यान वगेरे ३. निदर्शनकथाथी बृहत्कथा सुधीना कुल ११ प्रकार अहीं कथाविषयक समग्रदर्शी विभावना अने वर्गीकरणनी दृष्टिले लगभग छेवटनुं अने सर्वने स्वीकार्य बने अर्बु सूत्रबद्ध अर्बु कार्य हेमचन्द्राचार्य द्वारा सिद्ध थयुं छे. कथाना प्रकारोनी चर्चा अग्निपुराण, अमरकोश, अलङ्कारसङ्ग्रह, काव्यालङ्कार वगेरेमां मळे छे. भामह, विश्वनाथ, आनन्दवर्धन, दण्डी वगेरेओ पायानी चर्चा पण करी छे, परन्तु तेमां क्यांय हेमचन्द्राचार्यना वर्गीकरणमां छे तेवू, युरोपीय-ईरानी-भारतीय ओ त्रणे आर्यपरम्परानी प्राचीन-कथाओगें, अना प्रकार अने वस्तुगत भेद तथा रजूआत जेवां बधां ज मुख्य अङ्गो हस्तामलकवत् बनतां नथी. कथा अने आख्यायिकाना स्थूल भेदमां ज क्यांक चर्चा अटवाई जती होय अq पण लागे छे. अहीं 'प्रबन्धात्मक काव्य'ओ जातिसंज्ञा ज, कथाना गेय, अभिनेय अने नृत्य ओवा त्रणेने उचित वर्गमां स्थापे अहीं अध्याय-८ना आरम्भे ज काव्यने 'प्रेक्ष्य' अने 'श्राव्य' ओम बे Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २०१० ११३ प्रकारोमां वहेंचे छे. अहीं 'प्रबन्ध'नो अर्थ 'जे कृतिमां कोई अक मुख्य कथा आदि, मध्य अने अन्तथी, गद्यमां वा पद्यमां, क्वचित उभयमां पण आलेखवामां आवी छे ते? ओम अध्याहृत छे, परन्तु पायामां छे. आ दृष्टिले रास, आख्यान, पद्यवार्ता-कथानो पण ज्यां आश्रय छे तेवा ऋतुकाव्यो (फागु-बारमासी) वगेरेनो पण समावेश थाय छे. गणपति कायस्थे माधव अने कामकन्दलानी प्रेमकथा २,५०० दुहाओमां लखी तेने, आ अर्थमां ज 'माधवानल-कामकन्दलादोग्धकप्रबन्ध' ओवा कृतिनामे ओळखावी. पूर्वेना अने पछीना जैनस्रोतना रचयिताओओ गेय, ढाळनी देशीओमां जे जे कथाओनां आदि-मध्य-अन्त बांध्यां तेने 'रास' संज्ञा आपी, पौराणिक कथाओनां पूर्ण ने स्वतन्त्र कथानको भालण-नाकर-प्रेमानन्द वगेरेओ गेयढाळमां बांधीने आप्यां तेने 'आख्यान' संज्ञा आपी, जे अपभ्रंशकाळे पण अस्तित्व धरावती हती. जेमणे मुख्यत्वे मनोरञ्जक प्रकारनी कथाओ विशेषतः दुहा-चोपाईनो ज उपयोग करीने आपी तेमणे आवी रचनाओने 'अमुकना दुहा' के 'अमुकनी चोपाइ' अवा नामे ओळखावी. छे तो आ बधां ज रास, आख्यान, पद्यवार्ता 'प्रबन्ध' ओटले के जेमां कोई ओक मुख्य कथा आदि-मध्य-अन्तथी कोई अक कृतिना रूपमां बांधवामां आवी छे, तेना ज प्रकारो. प्रबन्धना ज आ स्वरूपगत भेद धरावता प्रकारो जुदा पड्या ते तेमां प्रयोजायेला छन्दबन्धने कारणे. जेमां मात्रामेळना ज छन्दोमां केटलाक उमेरण करीने गेय ढाळमां वपराता हता अवा 'ढाळ' के 'देशी'ओमां जे जे कथाश्रयी प्रबन्धो लखाया, गान साथे रजू थया, तेने जैन स्रोतमां 'रास'नी अने जैनेतर स्रोतमां 'आख्यान'नी रचना तरीके ओळख मळी. रह्यो त्रीजो मोटो वर्ग कथाओनो, जे दुहा-चोपाइना सळंगबन्धमां रजू थती हती ने अना कर्ताओओ पोते तो 'दुहा' के 'चोपाइ' ओवी संज्ञा आपेली, छेक शामळ सुधी पण केटलाके 'अमुकनुं आख्यान' ओम पण कह्यु, तेने आधुनिक अभ्यासीओओ 'पद्यवार्ता' ओवी स्वरूप-संज्ञाओ ओळखावी. आम करवामां ‘पद्यवार्ता'ने 'रास' अने 'आख्यान'थी जुदा पाडती ओळख-संज्ञाने, ‘स्वरूप' Literary Form तरीके लईओ, स्वीकारीओ तो अमां कशुं खोटुं के अयथार्थ नथी, केमके, पद्यवार्ताने पण 'रास' अने 'आख्यान'थी जुदां पाडतां केटलांक लक्षणो तो परम्परामां सिद्ध थयां ज छे. परन्तु, अहीं, मध्यकाळना अभ्यासीओओ, लक्षमां राखवानी जरूर ओ हती के आ त्रणे स्वरूपो छे तो 'प्रबन्धकाव्य'ना भिन्न Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ भिन्न प्रकारो अने वर्गो. 'प्रबन्ध' आम, हेमचन्द्राचार्ये जे रीते मूकी आप्युं छे ओ रीते तो ओक मुख्य वर्ग छे, जाति-प्रकार छे. आ ध्यानमां न रडुं ने कान्हडदे-प्रबन्ध पर ज ध्यान रह्यं अने अपभ्रंशकाळमां तथा पछी कुमारपाळ वगेरे जैतिहासिक पात्रोविषयक कथाश्रयी रचनाओ 'प्रबन्ध' नामे/शीर्षके ओळखाई तेथी जे कथानां पात्र अने घटनाओ ऐतिहासिक मनातां होय ओमनी कथाओने जुदी पाडवा 'प्रबन्ध'ने पण रास, आख्यान, पद्यवार्ता जेवू भिन्न ने स्वतन्त्र स्वरूप मानीने चालवामां आव्यु, चलावी लेवामां आव्यु. ओ भिन्न स्वरूप जरूर छे. रास अने आख्यानथी औतिहासिक मनातां पात्र-घटनानो आधार लेती कथाओ जुदी पडे ज. परन्तु ओने माटे 'प्रबन्ध' जेवो जाति माटेनो निश्चित थयेलो पर्याय अपनावतां सेळभेळ थाय. वळी, 'रणमल-छन्द' ने ओवी आ कुळनी बीजी 'पवाडा'नी रचनाओनुं शुं? ओ पण प्रबन्ध ? 'पवाडा'ना मूळमां 'प्रवाद' छे, 'प्रबन्ध' नहीं. पवाडा दक्षिणमांथी, महाराष्ट्रमांथी आवेल प्रकार अने संज्ञा छे. महाराष्ट्री अपभ्रंश साथे अनो सीधो अनुबन्ध छे. मराठा/आक्रमणो अने शासनना गाळामां, दक्षिण गुजरातमां आदिवासी बनीने वसी गयेली महाराष्ट्री-खानदेशनी बोली बोलनार द्वारा तथा मराठीमां कोई विजेताने बिरदावता 'जीतगेला' टुक धरावती रचनाओ 'पवाडा' तरीके गवाती होवाने कारणे गुजरातमां पण आ पर्याय प्रयोजातो थयो. दक्षिण गुजरातनी आदिवासी परम्परामां सीतानो पवाडो छे. सीताजीनो समावेश पौराणिक पात्रमा थाय, औतिहासिक युगना आरम्भ पहेलाना समयगाळामां, इतिहासमां नहीं. छतां ओ रामकथानी कण्ठपरम्परानी आदिवासी रचनामां ज सीतानो पवाडो ओवो प्रयोग थयो छे. जातिना वीरनी बिरदावली गावी, अनी जीतने गानथी वधाववी ओ बृहत् ओवा आर्यकुळनी जातिनो प्रचलित, परम्परागत प्रकार छे, जेनो कुळमूळगत जातिप्रकार रीते सम्बन्ध 'आख्यायिका' साथे छे, 'कथा' साथे नहीं. परन्तु 'प्रबन्ध'मां ओ बन्ने छ – प्रबन्धनी जे मूळभूत जातिप्रकारनी ओळख छे त्यां. जेने छन्द, अष्टक, पवाडो वगेरेथी ओळखावी छे ते रचनाओना ज कुळमां बिरदावली, प्रशस्ति Ballad, Heroic poetry नो समावेश थाय छे अने अमांथी ज काळक्रमे Folk-epic, Semi-Literary epic अने प्रशिष्ट मनातां Classical epic विकस्यां छे. हेमचन्द्राचार्ये अध्याय ८/ ५, सूत्र २००मां पहेलो ज समावेश साहजिक क्रमे महाकाव्यनो करी सूत्र २०१ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २०१० ११५ (८/६)मां महाकाव्य- लक्षण बांधतां जणाव्युं छे के महाकाव्य मुख्यत्वे संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा ग्राम्य भाषामां रचाय छे. अहीं नोंधपात्र छे ते 'ग्राम्यभाषा' अटले के मारु-गूर्जरमां बोलाती लोकबोली. ई. ८५०मां गुजराती जन्मी चूकेली अने 'कुवलयमाला' मां आ प्रदेशमां वसता लोकोमा अमे, तमे, भलु, बोलातुं लिखित दस्तावेजी रूपमां मळे छे. ओनो अर्थ ओ के हेमचन्द्राचार्य अने सिद्धराजनी व्यवहारभाषा तो बोलाती गुजराती ज हती, मारु-गूर्जर हती. अमां साहित्य पण रचवानी परम्परा न हती अथी संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंशमां रचायु. परन्तु हेमचन्द्राचार्य ज्यारे महाकाव्य अंगे सूत्र २०१मां ‘पद्यं प्रायः संस्कृतप्राकृतापभ्रंशग्राम्यभाषानिबद्धं' ओम लखे छे तेनो अर्थ ओ के ते समये जे मारु-गूर्जर Old Western Rajastani हती अमां पण 'वृत्तसर्गाश्वाससन्ध्यवस्कन्दबन्धं सत्सन्धि शब्दार्थवैचित्र्योपेतं' अवां महाकाव्यो रचातां हतां. अहीं ज स्पष्ट थशे के आचार्यश्रीओ मात्र लिखित अने प्रशिष्ट मनाती महाकाव्यनी परम्पराने ज दृष्टिमां राखीने सूत्रबद्ध नथी कयुं, बोलाती बोली वा भाषानी तत्कालीन प्रवाह-परम्पराने पण दृष्टिमां राखी छे. अहीं जेने Folkepic के बारोटी परम्परानुं Semi-literary epic कहीओ छीओ, Heroic Narrative तरीके उल्लेखीओ छीओ तेनो ज निर्देश ने सूत्र-व्याख्यामा समावेश छे. आचार्यश्रीने अमना समयनी जीवती लोकपरम्परानो प्रत्यक्ष परिचय अने अनुं पण साहित्यिक मूल्य स्वीकृत न होत तो ओमणे पण बीजांनी जेम, आवी लोक-परम्पराना साहित्यने मीमांसाग्रन्थमां समाविष्ट कर्यु न होत ! आ कारणे तथा अपभ्रंश-व्याकरण निमित्ते दृष्टान्तमां लोक-कण्ठपरम्पराना दुहाओ मूक्या छे. (आथी ज आ लखनारे अना गुजरातीमां लखायेला सर्वप्रथम Folkloristics, लोकविद्याविज्ञानमां, लोकविद् folkloristमां हेमचन्द्राचार्यने गुजरातना आदि लोकविद्याविद् तरीके दर्शाव्या छे.) लोकपरम्परानां विविध लोकमहाकाव्यो, जेनो आरम्भमां निर्देश को छे, तेमां 'सर्ग' माटे 'साक'नो प्रयोग थाय छे. आ शब्द वैदिक-काळनो छे. 'रुद्राष्टाध्यायी'ना त्रीजा अध्यायना पहेला ज मन्त्रमा 'शतम् सेना अजयत् साकम् इन्द्रः' सो सो योद्धाओ धरावती सेना पर विजय प्राप्त करवो ते इन्द्रनुं पराक्रम छे. आने आधारे ज जातिने उगारनार विजेता वीर माटे 'ओके हजारा' प्रयोग आजे पण थाय छे. अने आवा वीरनी 'साक' अटले के पराक्रमगाथाने 'निहालदे सुलतान' जेवा लोकमहाकाव्यमां Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ अनुसन्धान- ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १ 'साका' तरीके ओळखावी छे. सर्ग, लम्बक, लम्भक, साक, तरङ्ग a मध्यम कदनी तथा मोटी कथाओना खण्डो के विभाग माटे चर्चाय छे. आम, 'कान्हडदेप्रबन्ध'ने अन्य आधारे वीरगाथा माटे 'प्रबन्ध' के पछी 'पवाडो' वापरीओ छीओ, ते आ दृष्टि संशोधनपूर्ण पुख्त चर्चा- विचारणा - निराकरण मागे छे ने तेमां हेमचन्द्राचार्यना आठमा अध्यायने दृष्टिमां राखवो उपयोगी बनशे. नाटक, रूपक वगेरेनी पण चर्चामां अनेक प्रकारो सेवा छे, जेमां ते काळनी गुजरातनी प्रशिष्ट ने लोक बन्ने रङ्गमंचीय कलाओने अनां मूळ सा जाणवानी महत्त्वनी सामग्री छे. अध्याय : ८नुं ओक नवं, दृष्टिपूर्ण अने संशोधनमां खूब ज अनिवार्य रूपमां उपयोगी कार्य छे ते १. उपाख्यान अने २. आख्यान पछीना कुल नव (९) कथाप्रकारो ३. निदर्शन ४. प्रवल्हिका ५ मन्थल्लिका, ६. मणिकुल्या छे. पछीना ९ सकलकथा १० उपकथा अने ११ बृहत्कथा पण कथानकना कद वगेरेनी दृष्टि तथा स्वरूपनी दृष्टि महत्त्वनां छे. 'आख्यान' सन्दर्भे सूत्र २०३ अनुषङ्गे लख्युं छे : 'प्रबन्धमध्ये परबोधनार्थं नलाद्युपाख्यानमिवोपाख्यानमभिनयन् पठन् गायन् यदेको ग्रन्थिक : कथयति तद् गोविन्दवदाख्यानम्'. प्रबन्ध - अटले के गद्य के पद्यमां बन्धायेली कथानी कृति. ओटले के महाभारत वगेरे. अमां अन्यने बोध आपवा माटे जे कथा कहेवाती होय तेने कोइ अक ग्रन्थिक स्वतन्त्र कृतिना रूपमां बांधे अने अभिनय, पठन, गान साथे / माटे ग्रन्थमां बान्धे आवी कथा ते आख्यान. भालणथी आरंभी प्रेमानन्द सुधीना आख्यानकारोनी रचनाओमां जे छे ते आ सूत्रमां छे. ओनो अर्थ से छे के दशमी - अगीआरमी सदीमां 'आख्यान' छे. आवी कृतिना पदबन्धमां गेय देशी ढाळ क्यारे वपरातो थयो, अना कडवकना अंगे कया कया तबक्के विकस्या : आ बाबत विशेष संशोधन मागे छे, परन्तु गुजरातीना जन्मना समये अपभ्रंशमां तेमज आचार्य श्रीनो ज बोली माटेनो पर्याय प्रयोजीने कही तो ग्राम्यभाषामां 'आख्यान' हतुं. अनो ज विकास पछीना तबक्के थयो. कथानी आन्तर-सामग्री Content of the tale अने तेनुं कृतिमां बंधाता रूपनी-ओटले के Form - दृष्टि निदर्शन, प्रवल्हिका, मन्थल्लिका, Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २०१० ११७ मणिकुल्या अहीं पहेली ज वखत चर्चाया जणाय छे. अगाउ क्यांय आ विशे केटलुक लखायुं होय ते आ लखनारना ध्यानमां न होय तेवू बने. परन्तु कथाने, आ रीते अना कथागत रूपने अने अना प्रयोजित रूपने आधारे वर्गीकृत करवानुं कार्य हेमचन्द्राचार्य पहेलां थयुं लागतुं नथी. 'काव्यानुशासनम्' अने 'विवेक'मां केटलांक दृष्टान्तो छे. पछीनी गुजराती कथानी कृतिओमां आ प्रकारनी कथाओ विशेष लखाई छे. कथा- आ वर्गीकरण, अनु कथानकजन्य आन्तर-स्वरूप अने कथा-कथाने जोडती भूमिकाकथानी पद्धति : अहीं सूत्रबद्ध बनी छे. मध्यकालीन कथाओ उपरान्त लोककथा Falktale माटे पण आ प्रकारो अभ्यासोपयोगी छे. नीति के व्यवहारज्ञान माटे ज्यारे पशु, पक्षी के अन्य निम्नपात्रनुं कथावृत्तान्त प्रयोजाय त्यारे अने निदर्शन कहेवाय. अना दृष्टान्तमां पंचतन्त्र अने कुट्टनीमत दर्शाव्या छे. अहीं Animal Story प्राणीकथा, Fable अने Parable बन्नेनो समावेश छे. 'फेबल'मां नीतिउपदेश माटे जे दृष्टान्तरूप कथा कहेवाय ते Animal Story छे. अमां पात्रस्थाने पशु, पक्षी वगेरे छे. आवी ज नीतिकथारूपे, दृष्टान्तरूप कथामां प्राणीने बदले मानव ज पात्ररूपे होय तो अने 'पेरेबल' कहेवाय. ईसपनी कथाओ ‘फेबल' छे, टोल्स्तोये लखेली बोधकथा 'पेरेबल' छे. माणसने जोइ जोइने अन्ते केटली जमीन जोइमे, अनी कथा टोल्स्तोय आपे छे. सांजनो सूरज ढळे त्यां सुधीमां जेटली भूमि पर दोडी वळे ओटलीनो मालिक : आ माटे लोलुप मोहवश अटलुं दोडे छे के अन्ते सूरज ढळे छे त्यारे ओ पण थाकातिरेके ढळी पडे छे ने बे गज जमीन-कबर माटेनी ! स्पष्टतः अहीं बोधकथा छे. नीति के बोध माटे दृष्टान्तरूपे कहेवाती कथा ते निदर्शनकथा, दृष्टान्तकथा. अहीं कोइने प्रश्न अ थाय के कुटणीओ कहेली कथाने आ वर्गनी केम कहेवामां आवी ? नीतिदृष्टि), मानव छतां पशुवत् होवाने कारणे ? मूळ कृति जाणता न होय तो आवो प्रश्न थाय. 'कुट्टनिमतम्'मां ओक युवान वाराङ्गना कुटणीनी पासे आवी कहे छे : 'मारी पासे कोई नवो, युवान, समृद्ध पुरुष ओक वखत आवे छे. कोई कायमी मने पाळनारो, पोषनारो, चाहनारो नथी. आवो ग्राहक केम पामवो ?' आ मतलबनी पृच्छानो जवाब आपता Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान- ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १ अनुभववृद्ध कुट्टणी, प्रयोजित मनोविज्ञान Applied Psychologyनो उपयोग करीने कहे छे : 'बधा आवे छे ओक वखत नावीन्य माटे ! वाराङ्गनागृहे आवनारने गृह, पत्नी, गाम बधानी उपरवट जई आववुं पडे छे. दरेक वखते कंइ माणस आवां विघ्नोनी उपरवट थइने न आवे !' युवान वाराङ्गना पूछे छे : 'उपाय शो ?' कुट्टणी कहे छे : 'आवनारने, मात्र नावीन्यथी अकवार साहस करीने आवनारने लागवुं जोइओ के अने मन- हृदयथी उत्कटतम रूपे चाहनार, प्रेम करनार तो मात्र तुं ज छे. जो ओनी तुं प्रतीति करावी शके तो ज तारो प्रेमी बधा सामेनो कायमी विरोध करीने पण तारी साथे रहे.' आम कही काशीराज अने वाराङ्गनानी कथा कहे छे. प्रेम मात्र करवानी, देखाडवानी वात नथी. सामाने खातरी थाय अवुं करवानी आवडतनी वात छे. अहीं जोई शकाशे के केन्द्रमां ओक विचार छे, सिद्धान्त छे, एने पुष्ट करवा माटे कहेवाती कथा छे तेथी ते निदर्शन - कथा छे. आम सूत्रबद्ध सेवा वार्ताप्रकारने समजवा माटे, पुष्ट करवा माटे जे कथानुं दृष्टान्त अपायुं होय, ते कथाने पूरा सन्दर्भ साथे जाणता होइओ त्यारे ज मूळ वात पकडाय छे. आम, दृष्टान्तकथा, निदर्शनकथा भारतीय प्राचीन - मध्यकालीन साहित्यनो व्यापक प्रकार छे, जे तेना ‘हेतु’नी दृष्टिओ वर्गीकृत छे. कोई वात, वाद, दृष्टान्तने पुष्ट करवा माटे जे कथा प्रयोजाय ते निदर्शन - कथा. आ बराबर दृष्टिमां होय तो ज 'प्रवल्हिका'नुं सूत्र पकडाय. अ विशे कहे छे : 'प्रधानमधिकृत्य यत्र द्वयोर्विवादः ' कोई अकने राखीने थतो बे वच्चेनो विवाद ते प्रवल्हिका. अहीं ‘प्रधानम् अधिकृत्य'नो अर्थ क्यारेक भूल - थाप खवडावे. अ ज रीते ‘विवाद' पण. 'प्रधानम्' ओटले मुख्य ने मध्यस्थी ओवी कोई व्यक्ति नहीं, परन्तु 'प्रधानम्' ओवो कोई विषय, कोई वाद, कोई सिद्धान्त, कोई मान्यता. अने 'विवाद' ओटले मात्र वातचीत के दलील नहीं, परन्तु पोताना मत, विचार, वाद, दलील वगेरेने पुष्ट करतुं निदर्शन. पक्ष ने प्रतिपक्ष बन्ने पोतपोताना मतने पुष्ट करती दृष्टान्तकथा कहे, निदर्शन - कथा कहे. ओक पक्ष ओक कथा कही ओक वात स्थापे ते तोडवा बीजो पक्ष बीजी कथा मांडे, जे ओना पक्षने दृढ करे ने सामेना पक्षनी दलीलनुं खण्डन करे. आम, आ ११८ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११९ डिसेम्बर २०१० प्रकार निदर्शन- शृङ्खला - संयोजननो छे. जे कंइ कहेवाय, स्थपाय के रदियो अपाय, तेने निदर्शन द्वारा पुष्ट करवुं पडे. आना दृष्टान्तरूपे अर्धप्राकृतमां लखायेली चेटक दर्शावी छे. ओ कथा प्रकाशमां नथी, परन्तु जैन अने जैनेतर बन्ने स्रोतमां 'प्रारब्ध वधे के पुरुषार्थ' नी कथा मळे छे. विशेष लाक्षणिक उदाहरण शामळनी 'उद्यमकर्मसंवाद' छे. ओमां ओक पात्र कहे छे प्रारब्ध ज मुख्य छे, प्रतिपक्ष कहे छे पुरुषार्थ. अ बन्ने प्रारब्ध अने पुरुषार्थने पुष्ट करतां दृष्टान्तो आपे छे. आम, केवळ वाद, वात, मान्यतानी अभिव्यक्ति नहीं, परन्तु तेने पुष्ट करती दृष्टान्तकथा ने अनी शृङ्खला अहीं रचाय छे. 'चित्रकारदुहिता' मां के वेताळ-पचीशी' मां जे प्रश्नगर्भकथाओ ओक भूमिकाकथाने आधारे संकळाती जाय ने कथानक विकसतुं जाय, ओवी भात - पेटर्न - छे. अहीं दलील छे, अने पुष्ट करतां नानां नानां कथानको वार्तानुं कथानक घडे छे. आम आ प्रकार प्रवलिकानो पेटा संलग्न अकम निदर्शन - कथानो छे. 'मन्थल्लिका' कथा प्रकार हास्य- मजाकनो छे. ओमां उपहास पाछळ तिरस्कार, ऊतारी पाडवानी भावना पण होय; तो क्वचित अमुक जाति-वर्गनी खासियतने निमित्त बनावीने हसाववानो पण होय. आवी कथामां पुरोहित, अमात्य, तापस वगेरे स्थानथी उच्च वर्गनां गणातां पात्रोनो उपहास करवानो होय. प्रेतमहाराष्ट्र भाषामां ओटले के पैशाचीमां लखायेली क्षुद्रकथा, गोरोचना, अनङ्गवती वगेरेने दृष्टान्तरूपे हेमचन्द्राचार्य दर्शावे छे. तेमां प्रथम बे प्रकाशमां आवी जणाती नथी. भरटकबत्रीशी अने विनोदकथानां कथानकोने आ प्रकारमा मूकी शकाय. वैदिक, बौद्ध अने जैन से त्रणे भारतीय आर्यधर्मनी जुदी पडती शाखाओनां साहित्यमां सामा पक्षने उद्देशीने आवी कथाओ कहेवाती थयेली. 'मणिकुल्या' नुं लक्षण हस्तामलकवत् करतुं हेमचन्द्रीय सूत्र छे : 'यस्यां पूर्ववस्तु न लक्ष्यते पश्चात् तु प्रकाश्यते' ओटले के ओमां पूर्वे जे घटना घटी गइ होय तेनुं कोई ज वीगत साथे वर्णन - निरूपण थतुं नथी, परन्तु ते पछी कोई चतुराईथी अनुमान - सम्भावनादिना आधारे अ घटना केवी रीते घटी हशे, तेना पर प्रकाश पाडे छे. हेमचन्द्राचार्य ओना दृष्टान्त तरीके 'मत्स्यहसिता' दर्शावे छे. सम्भवतः माछलीना हास्य पाछळना रहस्य विशेनी Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ कथानो अहीं निर्देश थयो जणाय छे. भाणामां पिरसायेली मृत माछलानी वानगीनो राणीले ‘परपुरुषनो तो हुं स्पर्श पण करती नथी' अवां कारणे अस्वीकार करतां मरेली माछली हसी पडी ! राजाने थयुं माछली कंइ हसे? ते पण मरेली ? आनुं कारण शुं? आम अहीं मात्र परिणाम छे, तेवू बनवानुं कारण नथी. अना पर प्रकाश मन्त्री पाडे छे. राजाओ आग्रहपूर्वक मन्त्रीने हास्य- कारण पूछतां अन्ते मन्त्रीने कहेवू पड्युं के जे राणी परपुरुषोने भोगववा स्त्रीना वेशमां पोताना यारने रणवासमां सतत साथे राखे छे, ते मरेला माछलाने पण स्पर्श नथी करती अq कहे छे तेथी मरेलो माछलो हस्यो ! आ कथा 'कथासरित्सागर' तथा अन्यत्र जाणीती छे. 'मणिकुल्या'नो अर्थ छे कुलडीमां छुपावेलो मणि. साचा मणिने माटीना पात्रमा गमे तेटलो ढांकीढूंबीछुपावीने राखो तो पण सामान्य अवां छिद्र के सूक्ष्म ओवी तिराडमांथी पण रत्ननुं किरण बहार तो आवे ज अने अने आधारे चतुर व्यक्ति कुलडीमां मणि छुपाव्यो छे, ते जाणी ज जाय. अर्थात् कोई पण व्यक्ति गमे तेटलो छानोछूपो गुनो करे, परन्तु ओ गुनानुं परिणाम जोइने, सूक्ष्म निरीक्षण अने तर्कने आधारे चतुर व्यक्ति अ घटना केवी रीते बनी हशे, ते उकेली शके. आधुनिक डिटेक्टीव कथा अनुं उदाहरण छे. चोरी के खून थयां होय त्यारे ओ कोणे कर्यु, क्यारे कर्यु, ओ 'पूर्ववस्तु न लक्ष्यते' परन्तु चतुर डिटेक्टीव जे कंइ बन्युं छे तेनुं निरीक्षण करीने ते कार्य कोणे कर्यु, केवी रीते कर्यु, ते पकडी पाडे - 'पश्चात् तु प्रकाश्यते'. आवी कथानुं उत्तम दृष्टान्त 'वसुदेव-हिण्डी'मां आवती चारुदत्तनी कथामां छे. नदीकिनारे फरवा गयेला चारुदत्त अने तेनां मित्रो भीनी रेतीमां पडेलां मोटां पगलां जुओ छे, ने थोडे जतां पदचिह्न जणातां नथी. परन्तु आगळ जतां कोइ वृक्ष नीचे ए ज पगलां जुओ छे, वृक्षनी सपुष्प डाळ तूटेली छे, अक नानी अने बीजी मोटी ओम बे व्यक्ति छे ते स्पष्ट थाय छे. आम पूर्वे जे कंइ बनी गयुं छे ते जाणमां नथी. परन्तु पदचिह्नो अने बीजां निरीक्षणोने आधारे कोई आकाशचारी नदीमा स्नान करती सुन्दरीने पोताना खभा पर बेसाडी लई गयो छे, ते जाणमां आवे छे. धर्म, अर्थ, काम के मोक्ष जेवा पुरुषार्थने सिद्ध करवा माटे वैचित्र्ययुक्त Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २०१० १२१ वृत्तान्तनुं वर्णन होय तेने परिकथा कही शूद्रककथा दृष्टान्तरूपे दर्शावी छे. आमां प्रेम, साहस, शौर्यनी अनेक कथाओनो समावेश थाय छे. नरवाहनदत्त, वसुदेव, धम्मिल, अगडदत्त वगेरेनी कथाओनो आ प्रकारमा समावेश थई शके. वीरगाथा, साहसशौर्यगाथा, प्रेमकथा वगेरे आ प्रकारमा आवे. 'फोकटेईल' माटे विश्वमान्य अवा स्टिथ थोम्प्सने पण लोककथाना प्रकारमा मिथ, लिजन्ड अने फॅरीटेईल मुख्य गणाव्या छे. मध्यम अने मोटा कदनी कथाओगें विभागीकरण के वर्गीकरण खण्डकथा, सकलकथा, उपकथा अने बृहत्कथामां थाय छे. आमां खण्ड अने उप तथा सकल अने बृहत् बहु नजीकना प्रकारो छे. ओमना वच्चेनी भेदरेखा अत्यन्त सूक्ष्म के आछी-पातळी छे. परन्तु हेमचन्द्राचार्य आ भेद सचोट रीते, लाघवथी स्पष्ट करी आपे छे. जे कथामां पूर्वप्रचलित अने प्रसिद्ध अवा कथानकना आदि, मध्य के अन्तना कोई अंशने ज रजू करवामां आवे ते खण्डकथा कहेवाय. अनुं दृष्टान्त इन्दुमतीनी कथा. परन्तु विविध कथानकोने सांकळीने सम्पूर्ण कथानक सिद्ध थाय ते सकलकथा. अनुं दृष्टान्त समरादित्यकथा. कोई प्रसिद्ध कथाना कोई अेक पात्रने केन्द्रमा राखी कथानुं स्वतन्त्ररूपमा आलेखन थाय ते उपकथा. अनुं दृष्टान्त चित्रलेखा. अने कोई मोटी कथाने विविध लम्भकमां विभक्त करी अमां मुख्य पात्रनी अनेक घटनाओ साथे अन्य व्यक्तिओनी घटनाओ पण सांकळी लेवामां आवे ते बृहत्कथा. आनुं दृष्टान्त नरवाहनदत्तनी कथा. 'कथा' सन्दर्भे हेमचन्द्राचार्यना 'काव्यानुशासनम्'ना आठमा अध्यायनी सामग्री, अहीं केटलीक वीगत साथे दर्शन कर्यु, चर्चा करी, मेथी स्पष्ट थशे ज के गुजराती मध्यकालीन साहित्यना तेमज अनां ज केटलाक अंगो-अंशो कण्ठ परम्पराना साहित्यमां पण ऊतरी आज सुधी जळवायां तेनां दशमीअगीआरमी सदीनां मूळने पण वस्तुनिष्ठ लिखित दस्तावेजी रूपनी सामग्री छे. गुजरातनी साहित्य, संगीत, नृत्य, नाटक जेवी कोइ पण कलासंस्कृतिनां उद्भव-विकासने जाणवा माटे आ स्रोत ज प्रमाणभूत कही शकाय. गुजरातनी कला-संस्कृतिनां मूळ तो प्राचीनतम छे ज. १८ थी २२ लाख वर्ष पूर्वे पण गुजरात प्रदेशमां मानववसवाट हतो ओना पुरातत्त्वीय पुरावा मळ्या छे. जेटली Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ जूनी निग्रोइट जातिनी अश्मीभूत मानव खोपडी मळी छे. पछीना तबक्कानी केटलीक विगतो वेद, पुराण अने जैन स्रोतना प्राकृत भाषाना ग्रन्थोने आधारे तारवी शकीओ छीओ. परन्तु अमां अनुमान, निगमननो आधार अनिवार्य होवाथी कोई चोक्कस वीगतने 'तथ्य'ना रूपमां तारवयूँ प्रमाणमां मुश्केल छे. परन्तु ऐतिहासिक युगमा प्रवेशी) छीओ, खास तो ओछामां ओछं गुजरातीनुं भाषा-बोली तरीके- मूळ बंधातुं आव्युं ओ नवमी सदीना उत्तरार्धथी तो गुजरातनी कला-संस्कृतिने जाणवानुं शक्य छे. आठथी दश सुधीनो गाळो ज ओवो छे के ते समयमां मूळ आर्य जातिनी ज होय ओवी तथा आर्येतर जातिओनी होय अवी अनेक टोळीओ गुजरातमां आवी, स्थायी वसवाट करवा लागी. नवी बोली 'गुजराती' अमांथी जन्मी. ओ साथे ज ते ते जातिओना स्थायी वसवाट साथे ज गुजरातीतानुं ओक विशिष्ट रूप, अनी संस्कृति बंधायां. आ गाळो ते गुजरातनी संस्कृतिना पारणानो ! ओ जाणवानुं ज प्राचीनतम श्रद्धेय लिखित दस्तावेजी प्रमाण ते हेमचन्द्राचार्यना सिद्धहेमशब्दानुशासन, काव्यानुशासन, छन्दोनुशासन, त्रिषष्टिशलाकापुरुष अने तेवा अन्य ग्रन्थो, टीकाओ वगेरे. गुजरात माटे आ महत्त्वना छे अनुं कारण ओ छे के हेमचन्द्राचार्य पासे जेम भारतीय आर्य परम्पराना साहित्यना ज्ञान-परिशीलननो पायो छे, ते साथे ज, आ कलिकालसर्वज्ञ साधु-आचार्य पासे गुजरातनी ज पोतीकी परम्परानी प्रत्यक्षरूपनी पूर्ण तटस्थ छतां लगावपूर्ण जाणकारी छे. त्रिषष्टिशलाकापुरुषोना चरितालेखनने दृष्टिमां राखतां ज स्पष्ट थशे के जे अन्यमां नथी ते गुजरातीता, अनी संस्कार-परम्परा हेमचन्द्राचार्यमां छे. अन्य बधा ज स्रोतो, अना ग्रन्थो, साहित्यरूपे, धर्मग्रन्थरूपे मूल्यवान छे अमां शङ्काने कारण नथी ज, परन्तु त्यां सामग्री केन्द्रमा छे ते तळ गुजरातनी नथी, अन्य क्षेत्रोनी छे, ज्यारे अहीं छे ते पूरी गुजराती परम्परा छे. लग्नने अना विधि-पेटाविधि बधे ज भारतभरमां समान छे ज, तेम छतां गुजराती-लग्नमां पस भरवो, पीठी चोळवी, वरघोडो काढवो, जाननुं प्रस्थान, लग्ननी चोरी वगेरे आजे छे तेनुं ज दस्तावेजीकरण हेमचन्द्राचार्य-निरूपित प्रसङ्गमां छे. विधि ज नहीं, आनन्दोत्सवनां नृत्य, गोरअणवरनी मजाकनां फटाणां, अवां गीतोनी सामग्री- Content - ओ बधुं ज अमां दस्तावेजी रूपमां छे. धबकतुं छे. आजनी परम्परानुं प्रवर्तन त्यां छे. गुजरातनी मूळ संस्कृतिनुं आ रूप ते दशमी-अगीआरमी-बारमी सदीनु. अ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर 2010 123 पछी गुजरातीतामां ने भारतीयतामां अरब्बी-पर्शियन भळे छे. सल्तनतकाळ, मुगलकाळ, मराठाकाळमां अमां घणुं बधुं नवं आवे छे, जूनुं लुप्त थाय छे. उत्तरार्धना त्रीजा सांस्कृतिक काळमां पोटूंगीझ, अंग्रेजी वगेरे प्रभाव पडता जाय छे. भाषा/बोलीमां ज नहीं, साहित्यमां, अन्य कलाओमां, परम्परा अने जीवनअभिगम अने दृष्टिमां परिवर्तन आवे छे. केटलुक अनिच्छनीय पण प्रवेशे छे - जे नथी आपणी भारतीयताने के नथी गुजरातीताने संगत ! आ सांस्कृतिक सन्दर्भे पण नवा गुजरातीयुगना प्रभावक, अरुणगुजरातना भारतीयस्तरना प्रथम पण्डित हेमचन्द्राचार्य अने ओमनुं साहित्य. गुजरातनी संस्कृतिनुं मुख्य प्रवेशद्वार हेमचन्द्रीय साहित्य छे. 1, पद्मावती बंग्लोझ, भाविनस्कूल-महालक्ष्मीधाम सामे, थलतेज, अमदावाद-३८००५९ दूरभाष : 079-26853624