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अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ मध्यकालीन गुजराती कथासाहित्याभ्यास-सन्दर्भ
हेमचन्दाचार्य-कृत 'काव्यानुशासनम्'
हसु याज्ञिक
मध्यकालीन गुजराती साहित्यना कोई पण कथाश्रयी प्रकार ने तेनां स्वरूपोना उद्भव-विकासने, विशेषतः तो दशमी सदीना अना प्रवर्तनने वस्तुलक्षी दृष्टिले जाणवानो अकमात्र दृष्टिपूर्ण लिखित दस्तावेजीरूप मूळ सन्दर्भग्रन्थ हेमचन्द्राचार्यकृत 'काव्यानुशासनम्' छे. संस्कृत मीमांसानो आ ग्रन्थ छे, ओम धारीने मध्यकालीन गुजरातीना लिखित प्रवाहनां रास, आख्यान, पद्यवार्ता, फागु, बारमासी, प्रबन्ध-पवाडा तथा कण्ठप्रवाहनां लोक-महाकाव्य, अर्धसाहित्यिक महाकाव्य - SemiLiteratury Epicना मूळ, विकास, महत्त्वनां लक्षणो वगेरेनो अभ्यास करवामां, प्रस्तुत सन्दर्भग्रन्थनी आंख उघाडनारां तथ्यो प्रगट करती बाबतो तरफ मध्यकालीन गुजराती साहित्यना अभ्यासीओ- बहु ज ओछु ध्यान गयु. अनुं परिणाम ओ आव्यु के आख्यानने छेक चौदमा-पंदरमा शतकमां जन्मेलुं गुजराती- ज आगq नवं स्वरूप मानवामां आव्युं, अने आख्याननो पिता भालण छे, एवं ज स्थापीने चालवामां आव्यु. ख्यात ओवी पौराणिक कथाने देशी गेय ढाळमां रजू करवानी पद्धति तो बार-तेर सदीना रासमां सुनिश्चित थई गई हती अने कडवकनुं माळ पण प्रचारमा आवी गयुं हतुं तथा प्रबन्धमध्ये परबोधनार्थ आवती नलादिनी कथाने ओक कृतिना रूपमां बांधीने गान, पठन अने स्वल्प अभिनयना आधारे अेक ग्रन्थिक द्वारा सर्जाती-रजू थती कृति ते 'आख्यान' ओम अपभ्रंशकाळे ज संसिद्ध थई चूक्यु हतुं. आख्यानना स्वरूप-घडतरना विकासमां भालण- अर्पण अमूल्य छे, ओ विशे कोई प्रश्न नथी ज, परन्तु 'आख्यान' अपभ्रंशनो ज सीधो वारसो धरावतुं स्वरूप, ते आ काळे ज जन्म्युं ने संसिद्ध थयु, ओम धारी लईने चालवू, ते तथ्य- अज्ञान गणाय. मध्यकाळनां रास, फागु, 'प्रबन्ध' जातिप्रकार Literary Gnre ऐतिहासिक घटनामूलक घटकअंगो, अन्तरअङ्ग विषयवस्तु-बहिअङ्ग निरूपण-माळखुं के अनु निर्वहण, अनी रजूआतनुं स्वरूप, हस्तप्रतरूपे मळतो