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डिसेम्बर २०१०
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प्रकारोमां वहेंचे छे. अहीं 'प्रबन्ध'नो अर्थ 'जे कृतिमां कोई अक मुख्य कथा आदि, मध्य अने अन्तथी, गद्यमां वा पद्यमां, क्वचित उभयमां पण आलेखवामां आवी छे ते? ओम अध्याहृत छे, परन्तु पायामां छे. आ दृष्टिले रास, आख्यान, पद्यवार्ता-कथानो पण ज्यां आश्रय छे तेवा ऋतुकाव्यो (फागु-बारमासी) वगेरेनो पण समावेश थाय छे. गणपति कायस्थे माधव अने कामकन्दलानी प्रेमकथा २,५०० दुहाओमां लखी तेने, आ अर्थमां ज 'माधवानल-कामकन्दलादोग्धकप्रबन्ध' ओवा कृतिनामे ओळखावी. पूर्वेना अने पछीना जैनस्रोतना रचयिताओओ गेय, ढाळनी देशीओमां जे जे कथाओनां आदि-मध्य-अन्त बांध्यां तेने 'रास' संज्ञा आपी, पौराणिक कथाओनां पूर्ण ने स्वतन्त्र कथानको भालण-नाकर-प्रेमानन्द वगेरेओ गेयढाळमां बांधीने आप्यां तेने 'आख्यान' संज्ञा आपी, जे अपभ्रंशकाळे पण अस्तित्व धरावती हती. जेमणे मुख्यत्वे मनोरञ्जक प्रकारनी कथाओ विशेषतः दुहा-चोपाईनो ज उपयोग करीने आपी तेमणे आवी रचनाओने 'अमुकना दुहा' के 'अमुकनी चोपाइ' अवा नामे ओळखावी. छे तो आ बधां ज रास, आख्यान, पद्यवार्ता 'प्रबन्ध' ओटले के जेमां कोई ओक मुख्य कथा आदि-मध्य-अन्तथी कोई अक कृतिना रूपमां बांधवामां आवी छे, तेना ज प्रकारो. प्रबन्धना ज आ स्वरूपगत भेद धरावता प्रकारो जुदा पड्या ते तेमां प्रयोजायेला छन्दबन्धने कारणे. जेमां मात्रामेळना ज छन्दोमां केटलाक उमेरण करीने गेय ढाळमां वपराता हता अवा 'ढाळ' के 'देशी'ओमां जे जे कथाश्रयी प्रबन्धो लखाया, गान साथे रजू थया, तेने जैन स्रोतमां 'रास'नी अने जैनेतर स्रोतमां 'आख्यान'नी रचना तरीके ओळख मळी. रह्यो त्रीजो मोटो वर्ग कथाओनो, जे दुहा-चोपाइना सळंगबन्धमां रजू थती हती ने अना कर्ताओओ पोते तो 'दुहा' के 'चोपाइ' ओवी संज्ञा आपेली, छेक शामळ सुधी पण केटलाके 'अमुकनुं आख्यान' ओम पण कह्यु, तेने आधुनिक अभ्यासीओओ 'पद्यवार्ता' ओवी स्वरूप-संज्ञाओ ओळखावी. आम करवामां ‘पद्यवार्ता'ने 'रास' अने 'आख्यान'थी जुदा पाडती ओळख-संज्ञाने, ‘स्वरूप' Literary Form तरीके लईओ, स्वीकारीओ तो अमां कशुं खोटुं के अयथार्थ नथी, केमके, पद्यवार्ताने पण 'रास' अने 'आख्यान'थी जुदां पाडतां केटलांक लक्षणो तो परम्परामां सिद्ध थयां ज छे. परन्तु, अहीं, मध्यकाळना अभ्यासीओओ, लक्षमां राखवानी जरूर ओ हती के आ त्रणे स्वरूपो छे तो 'प्रबन्धकाव्य'ना भिन्न