Book Title: Kavi Kankan Chihal punarmulyankan
Author(s): Krushna Narayan Prasad
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

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Page 1
________________ कवि-कंकण छोहलः पुनर्मूल्यांकन -डॉ० कृष्ण नारायण प्रसाद 'मागध' (क) कवि-कंकण छोहल के सम्बन्ध में अद्यावधि प्राप्त विवरण जैन भक्त एवं मर्मी संत 'कवि-कंकण' छीहल के सम्बन्ध में अद्यावधि समस्त प्रकाशित सामग्रो दो प्रकार की है । प्रथम प्रकार की सामग्री सामान्यत: खोज-रिपोर्टों और साहित्येतिहासों की है। यह सामग्री सूचनात्मक है। इस प्रकार की अधिकांश सामग्री सूचना, विश्लेषण और मूल्यांकन की दृष्टि से संदिग्ध और अप्रामाणिक है जिसका ऐतिहासिक महत्त्व भर रह गया है । इनमें से कतिपय का उल्लेख किया जाता है । यथा : १. जैन गुर्जर कविओ, भाग-३, पृष्ठ २११६ गुजराती के इस ग्रन्थ में मोहन चन्द दलीचन्द देसाई ने छोहल का उल्लेख सोलहवीं शती के जैनेतर कवियों (सं०१४) के अन्तर्गत किया है एवं पंच-सहेली' का परिचय (पृ० ५७१) उपस्थित करते हुए उसके तीन दोहों (१, २, ६८) को उद्धत किया है। श्री देसाई की यह धारणा कि छीहल जैनेतर कवि थे, आज असिद्ध हो गयी है । २. खोज-रिपोर्ट (नागरी-प्रचारिणी-सभा) हिन्दो-माध्यम से छीहल विषयक पहली सूचना यहीं मिलती है। खोज-रिपोर्ट, सन् १९०० ई०, संख्या ६३ एवं सन् १६०२ ई०, संख्या ३५ में छोहल और उनकी 'पंच-सहेली' की सूचना है। इनमें छोहल राजपूताना के निवासी और 'पंच-सहेली' डिंगल की रचना मानी गयी है। ३. मिश्रबन्ध-विनोद (प्रथम भाग), पृष्ठ २२३ मिश्रबन्धुओं ने छोहल का उल्लेख (सं० १४५) सौर काल के अन्तर्गत करते हुए 'पंच-सहेली' का परिचय दिया है । सम्भवतः इसका आधार प्राचीन गुर्जर कविओं' ही है। ४. हिन्दी-साहित्य का इतिहास, पृष्ठ १६० आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने छीहल को भक्तिकाल के फुटकल कवियों में रखा है। उनके अनुसार छीहल "राजपूताने की ओर के थे। सं० १५७५ में इन्होंने 'पंच-सहेली' नाम की एक छोटी-सी पुस्तक दोहों में राजस्थानी मिली भाषा में बनायी, जो कविता की दृष्टि से अच्छी नहीं कही जा सकती ।... एक 'बावनी' भी है जिसमें ५२ दोहे हैं।" कहना नहीं होगा कि आचार्य शुक्ल की 'बावनी' विषयक सूचना और 'पंच-सहेली' का मूल्यांकन 'कविता की दृष्टि से अच्छी नहीं' किसी भ्रान्त सूचना पर आधारित होने के कारण मिथ्या और भ्रामक है। उन कृतियों को यदि वे स्वयं देख लेते, तो ऐसा वे कदापि नहीं लिखते। इस सम्बन्ध में आगे विचार किया जायेगा। ५. हिन्दी-साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृष्ठ ५८८ डॉ. रामकुमार वर्मा ने आचार्य शुक्ल को दोहराया भर है । उन्होंने छीहल को कृष्ण-काव्य के कवियों के साथ रखा है, किन्तु छीहल न तो जैनेतर थे और न कृष्णभक्त । ६. हिन्दी-साहित्य : उद्भव और विकास, पृष्ठ २८१ आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने 'लौकिक प्रेमकथानक' के अन्तर्गत 'पंच-सहेली' का केवल एक वाक्य में उल्लेख किया है : "फिर छोहल कवि की 'पंच-सहेली' नाम की रचना है जिसमें पांच सहेलियों के विरह का दोहों में वर्णन है।" ध्यातव्य है कि 'पंच. सहेली' लौकिक नहीं, धार्मिक प्रेमकथात्मक रचना है । जन साहित्यानुशीलन १५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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