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भूमिका महीपाल के सभापण्डित कवि क्षेमीश्वर' ने चण्डकौशिक और नैषधानन्द नामक दो नाटकों का प्रणयन किया। इनमें सत्यहरिश्चन्द्र के जीवनचरित पर आधारित नाटक चण्डकौशिक की विशेष प्रसिद्धि है।
दशवीं शताब्दी में केरलवासी कवि 'शक्तिभद्र' ने तीन नाटकों की रचना की जिनमें से केवल एक आश्चर्यचूडामणि सम्प्रति पूर्ण रूप में उपलब्ध है। नाटक की प्रस्तावना से ज्ञात होता है कि यह दक्षिण देश में रचित सर्वप्रथम नाटक था। इसके पूर्व दक्षिण में किसी नाटक की रचना नहीं हुई थी। इस प्रकार शक्तिभद्र को दक्षिण का आद्य नाटककार होने का गौरव प्राप्त है। इनका दूसरा नाटक वीणावासवदत्ता अपूर्ण रूप में उपलब्ध है, जबकि तीसरा नाटक उन्मादवासवदत्ता अभी तक उपलब्ध नहीं हो सका है। शक्तिभद्र से कुछ परवर्ती केरल प्रदेशस्थ ट्रावनकोर राज्य के महोदय नामक प्रान्त के राजा 'कुलशेखर वर्मा ने तपतीसंवरण
और सुभद्राधनञ्जय नामक दो नाटकों की रचना की। तपतीसंवरण में छ: अङ्क हैं जिनमें कुरु के पिता ‘संवरण' तथा माता 'तपती' का चरित वर्णित है। यह कथा महाभारत के आदिपर्व में आयी है। सुभद्राधनञ्जय के पाँच अङ्कों में धनञ्जय (अर्जुन) द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा के हरण की कथा वर्णित है। इसका भी उपजीव्य महाभारत ही है।
ग्यारहवीं शताब्दी में चन्देलवंशीय नरेश कीर्तिवर्मा के सभापण्डित कवि 'कृष्णमिश्र ने प्रबोधचन्द्रोदय' नामक 'प्रतीक नाटक' की रचना की। प्रतीक नाटकों एवं सामान्य नाटकों के लक्षण में कोई भेद नहीं है, अपित् इनकी 'प्रतीक'- इस विशेष संज्ञा का कारण यह है कि इनके पात्र श्रद्धा,भक्ति,ज्ञान,वैराग्य,मोह प्रभृति अमूर्त पदार्थों के प्रतीक हुआ करते हैं। कुछ प्रतीक नाटकों में मूर्त और अमूर्त दोनों का मिश्रण भी है। प्रतीक नाटकों का लेखन कब प्रारम्भ हुआ, यह निर्धारित कर पाना सम्भव नहीं। मध्य एशिया से बौद्ध नाटकों के जो त्रुटित अंश प्राप्त हुए हैं उनमें कतिपय अंश प्रतीक नाटक के भी हैं। इससे प्रतीत होता है कि प्रतीक नाटकों के लेखन की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। जिस हस्तलिखित प्रति में अश्वघोष का शारिपुत्रप्रकरण उपलब्ध हुआ है उसी में इस प्रतीक नाटक के भी अंश उपलब्ध हुए हैं, अत: निश्चयपूर्वक यह तो नहीं कहा जा सकता कि यह कृति अश्वघोष की है अथवा नहीं, किन्तु इतना अवश्य स्पष्ट है कि प्रतीक नाटकों के लेखन की परम्परा अतिप्राचीन थी जो कालान्तर में किसी कारणवश विच्छिन्न हो गयी। पुन: ग्यारहवीं
१. निर्णयसागर प्रेस, मुम्बई से दो टीकाओं सहित प्रथमतः प्रकाशित।
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