Book Title: Karm ka Bhed Prabhed
Author(s): Rameshmuni
Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf

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Page 8
________________ कर्म के भेद-प्रभेद ] [ ४१ दर्शन-मोहनीय के तीन प्रकार हैं-१ १. सम्यक्त्व-मोहनीय, २. मिथ्यात्व मोहनीय, ३. मिश्र मोहनीय । इन तीनों में मिथ्यात्व मोहनीय सर्वघाती है, सम्यक्त्व मोहनीय देशघाती है। और मिश्रमोहनीय जात्यन्तर सर्वघाती है। मोहनीय कर्म का दूसरा प्रकार चारित्रमोह है। इस प्रकृति के प्रभाव से आत्मा का चरित्र गुण विकसित नहीं होता है ।। ___ चारित्र मोहनीय के दो प्रकार प्रतिपादित हैं४-१. कषाय मोहनीय, २. नोकषाय मोहनीय । कषायमोहनीय का वर्गीकरण सोलह प्रकार से हुआ है और नोकषाय के नौ या सात प्रकार हैं । कषाय मोहनीय के सोलह प्रकार इस रूप में वर्णित हैं१-अनन्तानुबन्धी क्रोध -प्रत्याख्यानावरण क्रोध २-अनन्तानुबन्धी मान १०-प्रत्याख्यानावरण मान ३-अनन्तानुबन्धी माया । ११-प्रत्याख्यानावरण माया ४-अनन्तानुबन्धी लोभ १२-प्रत्याख्यानावरण लाभ ५-अप्रत्याख्यानावरण क्रोध १३-संज्वलन क्रोध ६-अप्रत्याख्यानावरण मान १४-संज्वलन मान ७-अप्रत्याख्यानावरण माया १५-संज्वलन माया ८-अप्रत्याख्यानावरण लोभ १६-संज्वलन लोभ । १. सम्मत्तं चेव मिच्छत्तं, सम्मामिच्छन्तमेव य । एयानो तिन्नि पवडीयो, मोहणिज्जस्स दंसणे ।। उत्तराध्ययन सूत्र ३३/६ ।। २. (क) केवलणाणावरणं दंसणछक्कं च मोहबारसगं । ता सव्वधाइसन्ना, भवंति मिच्छत्तवीसइमं ।। स्थानांग सूत्र २/४/१०५ टीका (ख) गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) ३६ ॥ ३. पंचाध्यायी-२१/६ ॥ ४. (क) प्रज्ञापना सूत्र-२३/२।।। (ख) चारित्तमोहणं कम्मं दुविहं तं वियाहियं । कसायमोहणिज्जं तु नोकसायं तहेव य ॥ उत्तराध्ययन सूत्र-३१/१० ॥ ५. (क) सोलसविहभेएणं, कम्मं तु कसायजं । सत्तविहं नवविहं वा, कम्मं च नोकसायजं ।। उत्तराध्ययन सूत्र-३३/११॥ (ख) प्रज्ञापना सूत्र २३/२ ।। (ग) समवायांग सूत्र-समवाय-१६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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