Book Title: Karm ka Bhed Prabhed Author(s): Rameshmuni Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf View full book textPage 6
________________ कर्म के भेद-प्रभेद ] [ ३६ . प्राप्त होता है । इस कर्म की परितुलना मधु से लिप्त तलवार की धार से की गई है । तलवार की धार पर परिलिप्त मधु का आस्वादन करने के समान सातावेदनीय कर्म है और जीभ के कट जाने के सदृश असातावेदनीय हैं । सातावेदनीय के आठ प्रकार इस प्रकार से प्रतिपादित हैं-२ १-मनोज्ञ शब्द ५-मनोज्ञ स्पश २-मनोज्ञ रूप ६-सुखित मन ३-मनोज्ञ गन्ध ७-सुखित वाणी ४-मनोज्ञ रस ८-सुखित काय असातावेदनीय कर्म के आठ प्रकार हैं, उनके नाम इस प्रकार से प्रतिपादित हैं। १-अमनोज्ञ शब्द ५-अमनोज्ञ स्पर्श २-अमनोज्ञ रूप ६-दुःखित मन ३-अमनोज्ञ गन्ध ७-दुःखित वाणी ४-अमनोज्ञ रस ८-दुःखित काय वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटाकोटि सागरोपम की है। भगवती सूत्र में उल्लेख मिलता है कि वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति दो समय की है। यहाँ यह सहज ही प्रश्न १. तत्त्वार्थ सूत्र ८/८ सर्वार्थसिद्धि ।। टीका । २. (क) प्रज्ञापना सूत्र-२३/३ ।। (ख) स्थानाङ्ग सूत्र-८/४८८ ॥ ३. (क) असायावेदरिणज्जे णं भंते ! कम्मे कतिविधे पण्णत्ते ? गोयमा ! अढविधे पन्नत्ते तं जहा अमणुण्णा सद्दा, जाव कायदुहया । · प्रज्ञापना सूत्र-२३/३/१५ (ख) स्थानांग सूत्र ८/४८८ ४. (क) उदही सरिसनामाणं तीसई कोडिकोडीअो । उक्कोसिया ठिई होइ अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ।। आवरणिज्जाण दुण्हं पि, वेयणिज्जे तहेव य । अन्तराए य कम्मम्मि, ठिई एसा वियाहिया ।। - उत्तराध्ययन सूत्र-३३/१६-२० (ख) प्रज्ञापना सूत्र-२३/२/२१-२६ ॥ ५. वेदणिज्जं जह दो समया ॥ भगवती सूत्र ६/३ ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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