Book Title: Karm ka Bhed Prabhed
Author(s): Rameshmuni
Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf

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Page 12
________________ कर्म के भेद-प्रभेद ] [ ४५ कर्म विपाक ग्रन्थ में एक सौ तीन भेदों का प्रतिपादन मिलता है ।' अन्यत्र इकहत्तर उत्तर प्रकृतियों का उल्लेख मिलता है, जिनमें शुभ नामकर्म की सैंतीस प्रकृतियाँ मानी गई हैं । बयालीस प्रकृतियाँ इस प्रकार हैं १. गतिनाम २. जातिनाम ३. शरीरनाम ४. शरीर अंगोपाङ्गनाम ५. शरीर बन्धननाम ६. शरीर संघातननाम ७. संहनन नाम ८. संस्थाननाम ६. वर्णनाम १०. गन्धनाम ११. रसनाम १२. स्पर्शनाम १३. अगरुलघुनाम १४. उपघातनाम १५. परघातनाम १६. आनुपूर्वीनाम १७. उच्छ्वासनाम १८. प्रातपनाम १६. उद्योतनाम २०. विहायोगतिनाम २१. त्रसनाम . २२. स्थावरनाम २३. सूक्ष्मनाम २४. बादरनाम २५. पर्याप्तनाम २६. अपर्याप्तनाम २७. साधारण शरीरनाम २८. प्रत्येक शरीरनाम (ख) तत्त्वार्थ सूत्र - ८ / १७–२० ।। २६. स्थिरनाम ३०. अस्थिरनाम Jain Educationa International ३१. शुभनाम ३२. अशुभनाम ३३. सुभगनाम ३४. दुर्भगनाम ३५. सुस्वरनाम ३६. दु:स्वरनाम ३७. प्रदेय नाम नामकर्म की जघन्यस्थिति माठ मुहूर्त की है और उत्कृष्ट-स्थिति बी कोटाकोटि सागरोपम की है । 3 ३८. अनादेय नाम ३६. यशः कीर्तिनाम ४०. अयशः कीर्तिनाम ४१. निर्माणनाम ४२. तीर्थंकर नाम १. कर्मग्रन्थ प्रथम भाग गाथा - ३ २. सत्तत्तीसं नासस्स पयई प्रो पुन्नमाह ( हु ) ता य इमो ॥ ३. ( क ) उदहीसरिसनामारणं बीसई कोडिकोडी | नागोत्ताणं उक्कोसा, श्रद्रुमुहुत्ता जहनिया ॥ नघतत्वप्रकरणम् - ७ भाष्य- ३७ ॥ उत्तराध्ययन सूत्र - ३३ / २३ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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