Book Title: Karm ka Bhed Prabhed
Author(s): Rameshmuni
Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf

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Page 13
________________ ४६ ] [ कर्म सिद्धान्त ७. गोत्र कर्म : जिस कर्म के उदय से जीव उच्च अथवा नीच कुल में जन्म लेता है, उसे गोत्र कर्म कहते हैं।' गोत्र कर्म दो प्रकार का है-१-उच्चगोत्र कर्म, २-नीच गोत्र कर्म । जिस कर्म के उदय से जीव उत्तम कुल में जन्म लेता है वह उच्च गोत्र कहलाता है । जिस कर्म के उदय से जीव नीच कुल में जन्मता है, वह नीच गोत्र है । धर्म और नीति के सम्बन्ध से जिस कुल ने अतीतकाल से ख्याति अजित की है, वह उच्चकुल कहलाता है जैसे हरिवंश, इक्ष्वाकुवंश, चन्द्रवंश इत्यादि । अधर्म एवं अनीति करने से जिस कुल ने अतीतकाल से अपकीर्ति प्राप्त को हो वह नोचकुल है । उदाहरण के लिये-मद्यविक्रेता, वधक इत्यादि । उच्चगोत्र की उत्तर प्रकृतियाँ पाठ हैं:१-जाति उच्चगोत्र ५-तप उच्चगोत्र २-कुल उच्चगोत्र ६-श्रुत उच्चगोत्र ३-बल उच्चगोत्र ७-लाभ उच्चगोत्र ४-रूप उच्चगोत्र ८-ऐश्वर्य उच्चगोत्र नीच गोत्रकर्म के आठ प्रकार प्रतिपादित हैं । ५ १-जाति नीचगोत्र ५-तप नीचगोत्र २-कुल नीचगोत्र ६-श्रुत नीचगोत्र ३-बल नीचगोत्र ७-लाभ नीचगोत्र ४-रूप नीचगोत्र ८-ऐश्वर्य नीचगोत्र जाति और कुल के सम्बन्ध में यह बात ज्ञातव्य है कि मातृपक्ष को जाति और पितृपक्ष को कुल कहा जाता है। गोत्रकर्म कुम्भकार के सदृश है। जैसे कुम्हार छोटे-बड़े अनेक प्रकार के घड़ों का निर्माण करता है, उनमें से कुछ घड़े ऐसे होते हैं जिन्हें लोग कलश बनाकर, चन्दन, अक्षत, आदि से चर्चित १. प्रज्ञापना सूत्र २३/१/२८८ टीका ।। २. (क) गोयं कम्मं तु दुविहं, उच्चं नीयं च आहियं ।। उत्तराध्ययन सूत्र-३३/१४ ।। (ख) प्रज्ञापना सूत्र पद-२३/उ० सू० २६३ ।। (ग) तत्त्वार्थ सूत्र-अ० ८ सूत्र-१२ ।। ३. तत्त्वार्थ सूत्र ८/१३ ॥ भाष्य । ४. उच्च अट्ठविहं होइ । उत्तराध्ययन सूत्र-३३/१४ ५. प्रज्ञापना सूत्र २३/१/२६२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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