Book Title: Karm ka Bhed Prabhed Author(s): Rameshmuni Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf View full book textPage 7
________________ ४० ] [ कर्म सिद्धान्त उबुद्ध हो सकता है कि-प्रज्ञापना, उत्तराध्ययन इन दोनों आगमों में इस कर्म की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की बताई है और भगवती सूत्र में दो समय की कही गई है। इन दोनों कथनों में विरोध लगता है पर ऐसा है नहीं कारण कि मुहूर्त के अन्तर्गत जितना भी समय आता है वह अन्तर्मुहूर्त कहलाता है । दो समय को अन्तमुहूर्त कहने में कोई बाधा या विसंगति नहीं है । वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त है, ऐसा कथन सर्वथा-संगत है। ४. मोहनीय कर्म : ____जो कर्म आत्मा में मूढ़ता उत्पन्न करता है वह मोहनीय कर्म कहलाता है। अष्टविध कर्मों में यह कर्म सबसे अधिक शक्तिशाली है, सातकर्म प्रजा हैं तो मोहनीय कर्म राजा है। इसके प्रभाव से वीतराग भाव भी प्रगट नहीं होता है। वह आत्मा के परम-शुद्ध भाव को विकृत कर देता है। इसके कारण ही आत्मा राग-द्वेषात्मक-विकारों से ग्रसित हो जाता है। इस कर्म की परितुलना मदिरापान से की गई है। जैसे व्यक्ति मदिरापान से परवश हो जाता है उसे किञ्चित् मात्र भी स्व तथा पर के स्वरूप का भान नहीं होता है।' वह स्व-पर के विवेक से विहीन हो जाता है। वैसे ही मोहनीय-कर्म के उदय-काल में जीव को हिताहित का, तत्त्व-अतत्त्व का भेद-विज्ञान नहीं हो सकता, वह संसार के ताने-बाने में उलझा हुआ रहता है । मोहनीय-कर्म का वर्गीकरण दो प्रकार से किया गया है१-दर्शन मोहनीय २-चारित्र मोहनीय जो व्यक्ति मदिरापान करता है, उसकी बुद्धि कुण्ठित हो जाती, मच्छित हो जाती है । ठीक इसी प्रकार दर्शन मोहनीय-कर्म के उदय पर आत्मा का विवेक भी विलुप्त हो जाता है, यही कारण है कि वह अनात्मीय-पदार्थों को आत्मीय समझने लगता है । १. (क) मज्जं व मोहणीयं प्रथम कर्मग्रन्थ-गाथा-१३ (ख) गोम्मटसार कर्मकाण्ड-२१ (ग) जह मज्जपाणमूढो, लोए पुरिसो परव्वसो होइ ।। ___ तह मोहेणविमूढो, जीवो उ परव्वसो होइ ।। स्थानांग सूत्र २/४/१०५ टीका २. (क) मोहणिज्जं पि दुविहं, दंसणे चरणे तहा। ___ उत्तराध्ययन सूत्र ३३/८ ॥ (ख) मोहणिज्जे कम्मे दुविहे पण्णत्ते तं जहा-दंसण मोहरिणज्जे चेव चरित्तमोहणिज्जे चेव ।। ___ स्थानांग सूत्र २/४/१०५ ।। (ग) प्रज्ञापना सूत्र २३/२ ।। ३. पंचाध्यायी २/६८-६-७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15