Book Title: Karan Siddhant Bhagya Nirman ki Prakriya
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf

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Page 6
________________ ८२ । [ कर्म सिद्धान्त ग्रस्त अंग हृदय, नेत्र आदि को हटाकर उनके स्थान पर स्वस्थ हृदय, नेत्र आदि स्थापित कर अंधे व्यक्ति को सूझता कर देते हैं, रुग्ण हृदय को स्वस्थ हृदय बना देते हैं तथा अपच या मंदाग्नि का रोग, सिरदर्द, ज्वर निर्बलता, कब्ज या अतिसार में बदल जाता है। इससे दुहरा लाभ होता है-(१) रोग के कष्ट से बचना एवं (२) स्वस्थ अंग की शक्ति की प्राप्ति । इसी प्रकार पूर्व की बंधी हुई अशुभ कर्म प्रकृति को अपनी सजातीय शुभ कर्म प्रकृति में बदला जाता है और उनके दुःखद फल से बचा जा सकता है। यह संक्रमण या रूपान्तरण कर्म के मूल भेदों में परस्पर में नहीं होता है । अर्थात् ज्ञानावरण कर्म, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय आदि किसी अन्य कर्म रूप में नहीं होता है। इसी प्रकार दर्शनावरण कर्म, ज्ञानावरण, वेदनीय आदि किसी अन्य कर्म रूप में नहीं होता है । यही बात अन्य सभी कर्मों के विषय में भी जाननी चाहिये । संक्रमण किसी एक ही कर्म के अवान्तर में उत्तर प्रकृतियों में अपनी सजातीय अन्य उत्तर प्रकृतियों में होता है। जैसे वेदनीय कर्म के दो भेद हैं । सातावेदनीय और असातावेदनीय । इनका परस्पर में संक्रमण हो सकता है अर्थात सातावेदनीय असातावेदनीय रूप हो सकता है और असातावेदनीय सातावेदनीय रूप हो सकता है परन्त इस नियम के कछ अपवाद हैं। जैसे दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय ये दोनों मोहनीय कर्म की ही अवान्तर या उपप्रकृतियां हैं परन्तु इनमें भी परस्पर में संक्रमण नहीं होता है। इसी प्रकार आयु कर्म की चार अवान्तर प्रकृतियाँ हैं उनमें भी परस्पर में संक्रमण नहीं हो सकता है अर्थात् नरकायु का बंध कर लेने पर जीव को नरक में ही जाना पड़ता है। वह तिर्यंच, मनुष्य, देव गति में नहीं जा सकता है। ___ कर्म-सिद्धान्त में निरूपित संक्रमण-प्रक्रिया को आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा में मार्गान्तरीकरण (Sublimation of mental energy) कहा जा सकता है। यह मार्गान्तरीकरण या रूपान्तरण दो प्रकार का है-१. अशुभ प्रकृति का शुभ प्रकृति में और २. शुभ प्रकृति का अशुभ प्रकृति में । शुभ (उदात्त) प्रकृति का अशुभ (कुत्सित) प्रकृति में रूपान्तरण अनिष्टकारी है और अशुभ (कुत्सित) प्रकृति का शुभ (उदात्त) प्रकृति में रूपान्तरण हितकारी है। वर्तमान मनोविज्ञान में कुत्सित प्रकृति के उदात्त प्रकृति में रूपान्तरण को उदात्तीकरण कहा जाता है । यह उदात्तीकरण संक्रमण करण का ही एक अंग है, एक अवस्था है। आधुनिक मनोविज्ञान में उदात्तीकरण पर विशेष अनुसंधान हुआ है तथा प्रचुर प्रकाश डाला गया है। राग या कुत्सित काम भावना का संक्रमण या उदात्तीकरण, मन की प्रवृत्ति को मोड़कर श्रेष्ठ कला, सुन्दर चित्र या महाकाव्य, भाव भक्ति में लगाकर किया जा सकता है। वर्तमान में उदात्तीकरण प्रक्रिया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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