Book Title: Karan Siddhant Bhagya Nirman ki Prakriya
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf

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Page 5
________________ करण सिद्धान्त : भाग्य - निर्माण की प्रक्रिया ] [ ८१ अच्छे कर्म (काम) करता है तो उसके पहले बाँधे हुए कर्मों की स्थिति व फलदान शक्ति घट जाती है जैसे श्रेणिक ने पहले, क्रूर कर्म करके सातवीं नरक की प्रा का बंध कर लिया था परन्तु फिर भगवान् महावोर की शरण व समवशरण में आया, उसे सम्यक्त्व हुआ जिससे अपने कृत कर्मों पर पश्चात्ताप हुआ तो शुभ भावों के प्रभाव से उसकी बांधी हुई सातवीं नरक की आयु घटकर पहले नरक की ही रह गई । इसी प्रकार कोई अच्छे काम करे और उच्च स्तरीय देव गति का बन्ध करे फिर शुभ भावों में गिरावट आ जाय तो वह उच्च स्तरीय देवगति के बन्ध में गिरावट आकर निम्न स्तरीय देवगति का हो जाता है । अथवा जिस प्रकार खेत में स्थित पौधे को प्रतिकूल खाद, ताप व जलवायु मिले तो उसकी आयु व फलदान की शक्ति घट जाती है । इसी प्रकार सत्ता में स्थित कर्मों का बन्ध कोई प्रतिकूल काम करे तो उसकी स्थिति व फलदान शक्ति घट जाती है । अथवा जिस प्रकार पित्त का रोग नींबू व आलूबुखारा खाने से, तीव्र क्रोध का वेग जल पीने से, ज्वर का अधिक तापमान बर्फ रखने से घट जाता है। इसी प्रकार पूर्व में किए गए दुष्कर्मों के प्रति संवर तथा प्रायश्चित आदि करने से उनकी फलदान शक्ति व स्थिति घट जाती है । अतः विषय कषाय की अनुकूलता में हर्ष व रति तथा प्रतिकूलता में खेद ( शोक) व अरति न करने से अर्थात् विरति ( संयम ) को अपनाने में ही आत्म-हित है । नियम : संक्लेष ( कषाय) की कमी एवं विशुद्धि ( शुभ भावों) की वृद्धि से पहले बन्धे हुए कर्मों में आयु कर्म को छोड़ कर शेष सब कर्मों की स्थिति एवं पाप प्रकृतियों के रस में अपवर्तन ( कमी) होता है । संक्लेश की वृद्धि से पुण्य प्रकृतियों के रस में अपवर्तन होता है । ६. संक्रमण करण : पूर्व में बन्धे कर्म की प्रकृति का अपनी जातीय अन्य प्रकृति में रूपांतरित हो जाना संक्रमरण करण कहा जाता है । वर्तमान में वनस्पति विशेषज्ञ अपने प्रयत्न विशेष से खट्टे फल देने वाले पौधे को मीठे फल देने वाले पौधे के रूप में . परिवर्तित कर देते हैं । निम्न जाति के बीजों को उच्च जाति के बीजों में बदल देते हैं । इसी प्रक्रिया से गुलाब की सैंकड़ों जातियाँ पैदा की हैं । वर्तमान वनस्पति विज्ञान में इस संक्रमण प्रक्रिया को संकर- प्रक्रिया कहा जाता है जिसका अर्थ संक्रमण करना ही है । इसी संक्रमण करण की प्रक्रिया से संकर मक्का, संकर बाजरा, संकर गेहूँ के बीज पैदा किए गए हैं । इसी प्रकार पूर्व में बंधी हुई कर्म - प्रकृतियाँ वर्तमान में बंधने वाली कर्म प्रकृतियों में परिवर्तित हो जाती हैं, . संक्रमित हो जाती हैं । अथवा जिस प्रकार चिकित्सा के द्वारा शरीर के विकार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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